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Monday 14 December 2015

बीसा यंत्र - 15 का यन्त्र के लाभ :-


यंत्र शास्त्र में बीसा यंत्र को प्रमुख स्थान प्राप्त है, हमारे  ऋषियों ने दुर्लभ बीसा यंत्रों के विषय में अति गोपनीय रहस्यों को संयोजित करके रखा है वैसे इस सन्दर्भ में एक कहावत भी प्रचलित है -  जहाँ है यन्त्र बीसा , तहां कहा करै जगदीसा . बीसा यन्त्र हरेक देवी – देवता के लिए अलग – अलग होता है. यह जातक के प्रयोजन के अनुसार भिन्न होता है. प्राचीन काल से ही दुर्गा जी के चित्र के नीचे बीसा यन्त्र आपने अवश्य देखा होगा, बीसा यंत्र मनोवांछित सफलता प्रदान करने वाला तथा भय, झगड़ा, लड़ाई इत्यादि से बचाव करने वाला माना जाता है इस यंत्र को किसी भी प्रकार से उपयोग में लाया जा सकता है चाहे तो इसे मंदिर में स्थापित कर सकते हैं या पर्स अथवा जेब में भी रख सकते हैं तंत्र से संबंधित कार्यों में भी इस यंत्र का उपयोग किया जाता है. भागवत में यंत्र को इष्ट देव का स्वरूप बतलाया गया है और इसी प्रकार नारद पुराण में भी बीसा यंत्र को भगवान विष्णु के समान पूजनीय कहा गया है. बीसा यंत्र में कोई भी जड़वाया जा सकता है इसमें रत्न प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालते हैं, कुण्डली में अशुभ योगों की अशुभता में कमी लाने हेतु इस बिसा यंत्र का उपयोग किया जा सकता है.

बीसा यंत्र  के लाभ 
धन के अत्यधिक अपव्यय से बचने के लिए लक्ष्मी बीसा यंत्र धारण किया जा सकता है केमद्रुम योग, दरिद्र योग आदि योग होने पर लक्ष्मी बीसा यंत्र बहुत लाभकारी होता है. बीसा यंत्र का प्रभाव चमत्कारी रुप से व्यक्ति पर असर दिखाता है. यह असीम वैभव, श्री, सुख और समृद्धि देता है.  ऐसे लोग, जिन्हें परिश्रम करने पर भी अभीष्ट फल की प्राप्ति नहीं होती, पदोन्नति में बाधा आ रही हो या प्रभुत्व के विकास में बाधाओं का सामना कर रहे हों उनके लिए बीसा यंत्र शीघ्र एवं अभीष्ट फल प्रदान करने वाला होता है


जीवन साथी के साथ संबंधों में तनाव होना एवं पारिवारिक कलह का व्याप्त रहना इत्यादि में पुखराज युक्त बीसा यंत्र धारण करने से तुरंत लाभ की प्राप्ति होती है. बीसा यंत्र कई प्रकार के होते हैं जिसमें अधिकतर समस्याओं से बचाव के लिए यह कारगर सिद्ध होते हैं

बीसा  यन्त्र की निर्माण विधि -
इस यन्त्र का निर्माण होली, दिवाली, विजयदशमी, नवरात्र, बसंत पंचमी, मकर संक्रांति, राम नवमी, जन्माष्टमी या फिर रवि पुष्य और गुरु पुष्य योग के समय भोजपत्र पर अष्टगंध या लेसर – कुंकुम आदि को गंगाजल में घोल कर अनार या चमेली की कलम से लिखें. फिर उसका विधि पूर्वक पूजन करके सम्बंधित मंत्र का जप और हवन करके बीसा यन्त्र को सिद्ध किया जाता है सिद्ध होने के बाद बीसा यन्त्र तुरंत फल देने लगता है. इस सिद्ध यन्त्र को ताबीज में भरकर लाल डोरे में बंधकर गले में पहन सकते हैं. इन यंत्रों का निर्माण स्वर्ण , चाँदी या ताम्बे पर कराकर पूजन स्थल पर रखने और नित्य धुप -दीप दिखाकर पूजन करने से आपको इसका प्रभाव स्पष्ट दिखने लगेगा.
सर्व सिद्धि दाता माँ दुर्गा जी का सिद्ध यन्त्र -
इस यन्त्र को बनाकर नवार्ण मंत्र का बीस हजार जप करके दशांश हवन करके सिद्ध किया जाता है. नवार्ण मंत्र इस प्रकार है - ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये   विच्चे.
इस यन्त्र को ताबीज में भरकर धारण किया जा सकता है. या धातु पत्र पर अंकित कराकर पूजा घर में रखा जा सकता है.
भक्ति भाव जगाने हेतु बीसा यन्त्र -
इस बीसा महायंत्र को भोजपत्र पर बना कर नित्य पंचोपचार विधि से पूजन करें. यन्त्र का निर्माण दिए गए चित्र के अनुसार कराना है. ॐ ह्रीं श्रीं परमेश्व स्वाहा मंत्र का बीस हजार जप करके इसका दशांश हवन करने से यह यन्त्र चैतन्य हो जाता है. इसके दर्शन और पूजा से दैहिक , दैविक और भौतिक त्रयतापों से मुक्ति तथा ईश्वर के प्रति भक्ति – भावना में वृद्धि होती है.
सर्व व्याधिहरण बीसा यन्त्र – अमावस्या के दिन इस यन्त्र को अष्टगंध की स्याही से भोजपत्र पर पीपल की लकड़ी की कलम से लिखना है. इस यन्त्र को हनुमान को दाहिने रखकर
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15 का यन्त्र : -


कई लोग प्रेतात्माओं से ग्रस्त होते हैं या फिर उन्हें भूत प्रेत का डर होता है । ऊपर दिया गया 15 का यन्त्र ऐसे हालात में बहुत उपयोगी होता है । यह बहुत ही शक्तिशाली यन्त्र है जिसके और भी कई उपयोग हैं । इसे 15 का यन्त्र कहा जाता है क्योंकि इसकी हर लाइन का जोड़ 15  ही आता है । यह नवग्रह यन्त्र के रूप में मान्यता रखता है, जैसे एक नम्बर सूर्य का दो नम्बर चन्द्र का तीन नम्बर गुरु का और चार नम्बर प्लूटो का, पांच नम्बर बुध का,छ: नम्बर शुक्र का, सात नम्बर राहु का, आठ नम्बर शनि का और नौ नम्बर मंगल का माना जाता है.इन सब ग्रहों को शुक्र के नम्बर छ: में ही बान्ध कर रखा गया है,जो योगफ़ल पन्दर का आता है, उसे अगर जोडा जाये तो एक और पांच को मिलाकर केवल छ: ही आता है, किसी भी ग्रह को शुक्र के रंग में रंगने का काम यह यन्त्र करता है,और शुक्र ही भौतिक सुख का प्रदाता है, किसी भी संसार की वस्तु को उपलब्ध करवाने के लिये शुक्र की ही जरूरत पडती है,प्रेम की देवी के रूप में भी इसे माना जाता है, और भारतीय ज्योतिष के अनुसार शुक्र ही लक्ष्मी का रूप माना जाता है !

आवश्यक सामग्री:

1) अनार के पेड़ की एक डंडी (टहनी) जिसके एक सिरे को तीखा करके कलम का आकार दे दिया जाए।
2) अष्टगंध जो की आठ चीज़ों, चन्दन, कस्तूरी, केसर इत्यादि का मिश्रण है । यह आसानी से पंसारी की दुकान में मिल जाता है ।
3) भोजपत्र: ये भी आसानी से पंसारी की दूकान से मिल जाता है ।
4) गंगा जल अगर उपलब्ध हो तो अन्यथा साधारण पानी भी लिया जा सकता है ।
5) ताम्बे का बना हुआ ताबीज़ का खोल। ताबीज़ कई आकार में आते हैं । आप कोई भी आकार का खोल ले सकते हैं ।

आपको यन्त्र बनाने के लिए इन सब सामग्रियों की आवश्यकता है ।

विधि: चुटकी भर अष्टगंध लें और इसमें गंगा जल या साधारण जल मिला लें । इससे आपकी स्याही तैयार हो जायेगी जिससे आप ऊपर दिया हुआ यन्त्र बनायेंगे ।
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स्याही बनाने के बाद अनार की डंडी लीजिये और इसे स्याही में भिगोकर ऊपर दिया हुआ यन्त्र एक भोजपत्र के टुकड़े पर बनाइये । पूरा यन्त्र बना लेने के बाद इसे सूखने के लिए रख दीजिये । सूखने के बाद भोजपत्र को मोड़ कर इतना छोटा बना लीजिये की यह ताबीज़ के खोल के अन्दर पूरा आ जाए । इसे खोल के अन्दर डाल कर खोल को बंद कर दीजिये । अब यह ताबीज़ डालने के लिए तैयार है । इसे काले रंग के धागे में डालकर अपने गले में डाल लीजिये । इस यन्त्र को किसी शुभ मुहुर्त में ही बनाना चाहिए।

नोट: ऊपर दी गयी विधि केवल पाठकों की शिक्षा हेतु दी गयी है । यन्त्र बनाने में बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है और वो सारी बातें एक लेख में नहीं बतायी जा सकती हैं । यन्त्र बनाना एक कला है और पूरा फायदा लेने के लिए यन्त्र किसी अनुभवी व्यक्ति से ही बनवाना चाहिए ।
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