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Monday 14 December 2015

बीसा यंत्र - 15 का यन्त्र के लाभ :-


यंत्र शास्त्र में बीसा यंत्र को प्रमुख स्थान प्राप्त है, हमारे  ऋषियों ने दुर्लभ बीसा यंत्रों के विषय में अति गोपनीय रहस्यों को संयोजित करके रखा है वैसे इस सन्दर्भ में एक कहावत भी प्रचलित है -  जहाँ है यन्त्र बीसा , तहां कहा करै जगदीसा . बीसा यन्त्र हरेक देवी – देवता के लिए अलग – अलग होता है. यह जातक के प्रयोजन के अनुसार भिन्न होता है. प्राचीन काल से ही दुर्गा जी के चित्र के नीचे बीसा यन्त्र आपने अवश्य देखा होगा, बीसा यंत्र मनोवांछित सफलता प्रदान करने वाला तथा भय, झगड़ा, लड़ाई इत्यादि से बचाव करने वाला माना जाता है इस यंत्र को किसी भी प्रकार से उपयोग में लाया जा सकता है चाहे तो इसे मंदिर में स्थापित कर सकते हैं या पर्स अथवा जेब में भी रख सकते हैं तंत्र से संबंधित कार्यों में भी इस यंत्र का उपयोग किया जाता है. भागवत में यंत्र को इष्ट देव का स्वरूप बतलाया गया है और इसी प्रकार नारद पुराण में भी बीसा यंत्र को भगवान विष्णु के समान पूजनीय कहा गया है. बीसा यंत्र में कोई भी जड़वाया जा सकता है इसमें रत्न प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालते हैं, कुण्डली में अशुभ योगों की अशुभता में कमी लाने हेतु इस बिसा यंत्र का उपयोग किया जा सकता है.

बीसा यंत्र  के लाभ 
धन के अत्यधिक अपव्यय से बचने के लिए लक्ष्मी बीसा यंत्र धारण किया जा सकता है केमद्रुम योग, दरिद्र योग आदि योग होने पर लक्ष्मी बीसा यंत्र बहुत लाभकारी होता है. बीसा यंत्र का प्रभाव चमत्कारी रुप से व्यक्ति पर असर दिखाता है. यह असीम वैभव, श्री, सुख और समृद्धि देता है.  ऐसे लोग, जिन्हें परिश्रम करने पर भी अभीष्ट फल की प्राप्ति नहीं होती, पदोन्नति में बाधा आ रही हो या प्रभुत्व के विकास में बाधाओं का सामना कर रहे हों उनके लिए बीसा यंत्र शीघ्र एवं अभीष्ट फल प्रदान करने वाला होता है


जीवन साथी के साथ संबंधों में तनाव होना एवं पारिवारिक कलह का व्याप्त रहना इत्यादि में पुखराज युक्त बीसा यंत्र धारण करने से तुरंत लाभ की प्राप्ति होती है. बीसा यंत्र कई प्रकार के होते हैं जिसमें अधिकतर समस्याओं से बचाव के लिए यह कारगर सिद्ध होते हैं

बीसा  यन्त्र की निर्माण विधि -
इस यन्त्र का निर्माण होली, दिवाली, विजयदशमी, नवरात्र, बसंत पंचमी, मकर संक्रांति, राम नवमी, जन्माष्टमी या फिर रवि पुष्य और गुरु पुष्य योग के समय भोजपत्र पर अष्टगंध या लेसर – कुंकुम आदि को गंगाजल में घोल कर अनार या चमेली की कलम से लिखें. फिर उसका विधि पूर्वक पूजन करके सम्बंधित मंत्र का जप और हवन करके बीसा यन्त्र को सिद्ध किया जाता है सिद्ध होने के बाद बीसा यन्त्र तुरंत फल देने लगता है. इस सिद्ध यन्त्र को ताबीज में भरकर लाल डोरे में बंधकर गले में पहन सकते हैं. इन यंत्रों का निर्माण स्वर्ण , चाँदी या ताम्बे पर कराकर पूजन स्थल पर रखने और नित्य धुप -दीप दिखाकर पूजन करने से आपको इसका प्रभाव स्पष्ट दिखने लगेगा.
सर्व सिद्धि दाता माँ दुर्गा जी का सिद्ध यन्त्र -
इस यन्त्र को बनाकर नवार्ण मंत्र का बीस हजार जप करके दशांश हवन करके सिद्ध किया जाता है. नवार्ण मंत्र इस प्रकार है - ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये   विच्चे.
इस यन्त्र को ताबीज में भरकर धारण किया जा सकता है. या धातु पत्र पर अंकित कराकर पूजा घर में रखा जा सकता है.
भक्ति भाव जगाने हेतु बीसा यन्त्र -
इस बीसा महायंत्र को भोजपत्र पर बना कर नित्य पंचोपचार विधि से पूजन करें. यन्त्र का निर्माण दिए गए चित्र के अनुसार कराना है. ॐ ह्रीं श्रीं परमेश्व स्वाहा मंत्र का बीस हजार जप करके इसका दशांश हवन करने से यह यन्त्र चैतन्य हो जाता है. इसके दर्शन और पूजा से दैहिक , दैविक और भौतिक त्रयतापों से मुक्ति तथा ईश्वर के प्रति भक्ति – भावना में वृद्धि होती है.
सर्व व्याधिहरण बीसा यन्त्र – अमावस्या के दिन इस यन्त्र को अष्टगंध की स्याही से भोजपत्र पर पीपल की लकड़ी की कलम से लिखना है. इस यन्त्र को हनुमान को दाहिने रखकर
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15 का यन्त्र : -


कई लोग प्रेतात्माओं से ग्रस्त होते हैं या फिर उन्हें भूत प्रेत का डर होता है । ऊपर दिया गया 15 का यन्त्र ऐसे हालात में बहुत उपयोगी होता है । यह बहुत ही शक्तिशाली यन्त्र है जिसके और भी कई उपयोग हैं । इसे 15 का यन्त्र कहा जाता है क्योंकि इसकी हर लाइन का जोड़ 15  ही आता है । यह नवग्रह यन्त्र के रूप में मान्यता रखता है, जैसे एक नम्बर सूर्य का दो नम्बर चन्द्र का तीन नम्बर गुरु का और चार नम्बर प्लूटो का, पांच नम्बर बुध का,छ: नम्बर शुक्र का, सात नम्बर राहु का, आठ नम्बर शनि का और नौ नम्बर मंगल का माना जाता है.इन सब ग्रहों को शुक्र के नम्बर छ: में ही बान्ध कर रखा गया है,जो योगफ़ल पन्दर का आता है, उसे अगर जोडा जाये तो एक और पांच को मिलाकर केवल छ: ही आता है, किसी भी ग्रह को शुक्र के रंग में रंगने का काम यह यन्त्र करता है,और शुक्र ही भौतिक सुख का प्रदाता है, किसी भी संसार की वस्तु को उपलब्ध करवाने के लिये शुक्र की ही जरूरत पडती है,प्रेम की देवी के रूप में भी इसे माना जाता है, और भारतीय ज्योतिष के अनुसार शुक्र ही लक्ष्मी का रूप माना जाता है !

आवश्यक सामग्री:

1) अनार के पेड़ की एक डंडी (टहनी) जिसके एक सिरे को तीखा करके कलम का आकार दे दिया जाए।
2) अष्टगंध जो की आठ चीज़ों, चन्दन, कस्तूरी, केसर इत्यादि का मिश्रण है । यह आसानी से पंसारी की दुकान में मिल जाता है ।
3) भोजपत्र: ये भी आसानी से पंसारी की दूकान से मिल जाता है ।
4) गंगा जल अगर उपलब्ध हो तो अन्यथा साधारण पानी भी लिया जा सकता है ।
5) ताम्बे का बना हुआ ताबीज़ का खोल। ताबीज़ कई आकार में आते हैं । आप कोई भी आकार का खोल ले सकते हैं ।

आपको यन्त्र बनाने के लिए इन सब सामग्रियों की आवश्यकता है ।

विधि: चुटकी भर अष्टगंध लें और इसमें गंगा जल या साधारण जल मिला लें । इससे आपकी स्याही तैयार हो जायेगी जिससे आप ऊपर दिया हुआ यन्त्र बनायेंगे ।
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स्याही बनाने के बाद अनार की डंडी लीजिये और इसे स्याही में भिगोकर ऊपर दिया हुआ यन्त्र एक भोजपत्र के टुकड़े पर बनाइये । पूरा यन्त्र बना लेने के बाद इसे सूखने के लिए रख दीजिये । सूखने के बाद भोजपत्र को मोड़ कर इतना छोटा बना लीजिये की यह ताबीज़ के खोल के अन्दर पूरा आ जाए । इसे खोल के अन्दर डाल कर खोल को बंद कर दीजिये । अब यह ताबीज़ डालने के लिए तैयार है । इसे काले रंग के धागे में डालकर अपने गले में डाल लीजिये । इस यन्त्र को किसी शुभ मुहुर्त में ही बनाना चाहिए।

नोट: ऊपर दी गयी विधि केवल पाठकों की शिक्षा हेतु दी गयी है । यन्त्र बनाने में बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है और वो सारी बातें एक लेख में नहीं बतायी जा सकती हैं । यन्त्र बनाना एक कला है और पूरा फायदा लेने के लिए यन्त्र किसी अनुभवी व्यक्ति से ही बनवाना चाहिए ।
अगर आप पूरी विधि से मेरे द्वारा बनाया हुआ उपरोक्त 15 का यन्त्र मंगवाने में रूचि रखते हैं तो कीमत जानने के लिए मुझे ईमेल करिए !

कैसे पहचाने आप पर तंत्र शक्ति (या काला जादू) प्रयोग की गई है ?




अक्सर हम अपनी जान-पहचान के लोगों द्वारा तांत्रिक शक्तियों के वशीकरण तथा मारण प्रयोगों के बारे में सुनते हैं। हालांकि हममें से यह कोई भी नहीं जानता कि आखिर तांत्रिक प्रयोग किस तरह से और कैसे कार्य करते हैं और अपने ऊपर किए तंत्र शक्ति के गलत प्रयोग को किस प्रकार से खत्म किया जाए।
तांत्रिकों तथा योगियों के अनुसार दुनिया की हर चीज चाहे वो सजीव हो या निर्जीव हो ब्रहमाण्ड की विशाल ऊर्जा का ही रूपांतरित रूप है। वे अक्सर शत्रुओं का बुरा करने के लिए नकारात्मक ऊर्जाओं को प्रयोग करते हैं जिसे पहचानना बेहद आसान होता है।

ऎसे पहचाने आप पर तंत्र शक्ति प्रयोग की गई है :

(1) नाड़ी की गति सामान्य से अधिक हो जाती है: जब भी शरीर पर किसी भी नकारात्मक ऊर्जा का हमला होता है तो हमारा शरीर उसका प्रतिरोध करता है जिसके फलस्वरूप हमारी धड़कन सामान्य से तेज हो जाती है। जितना घातक अटैक होगा, नाड़ी की गति उतनी ही ज्यादा तेज हो जाएगी।
(2) श्वास की गति बढ़ जाती है: तांत्रिक हमला होते ही सांस की गति भी बहुत तेज हो जाती है। घातक हमले की हालत में श्वास की गति इतनी अधिक हो सकती है जितनी की भागदौड़ के बाद भी नहीं होती।
(3) अचानक ही शारीरिक तथा मानसिक रूप से कमजोरी महसूस करना: तांत्रिक हमले या साईकिक अटैक में नकारात्मक शक्तियां व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को काबू में करने का प्रयास करती है जिसके चलते व्यक्ति अपनी शक्ति काम नहीं ले पाता और वह अंदर ही अंदर शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोरी महसूस करने लगता है।
(4) रात को डरावने सपने आते हैं: तांत्रिक हमले के दौरान रात को सोते समय भयावह और डरावने सपने आने लगते हैं। कई बार ऎसा लगता है जैसे कि आप पर किसी जानवर ने हमला कर दिया या आप कहीं बहुत ऊंचाई से गिर गए हैं।
(5) पलंग के पास पानी रखने से भी पता चलता है: रात को सोते समय पलंग के पास पानी का एक गिलास रख दें और सोते समय मन में सोचे कि आपके अंदर की नकारात्मक ऊर्जा उस पानी में जा रही है। सुबह उस पानी को किसी छोटे पौधे में डाल दें। ऎसा लगातार आठ दिन तक करें। आठ दिन में वह पौधा मुरझा जाएगा। यदि हमला बहुत तेज हुआ तो पौधा 2-3 दिन में ही कुम्हला जाएगा।
(6) तकिए के नीचे नींबू रखें: फल तथा सब्जियां भी नकारात्मक ऊर्जा से अत्यधिक प्रभावित होते हैं। आप रात को सोते समय एक नींबू अपने तकिए के नीचे रख दें और अपने मन में सोचे कि आपके आस-पास कोई भी नकारात्मक ऊर्जा है तो वह इस नींबू में आ जाएं। तांत्रिक हमला होने की दशा में सुबह आप उस नींबू को मुरझा हुआ पाएंगे। उसका रंग भी काला पड़ जाएगा।

ऐसे होता है किसी व्यक्ति पर तंत्र शक्ति (या काले जादू) का प्रयोग : -

1. कभी न खाएं दूसरे की दी गए सफेद मिठाई
2. काले जादू का प्रयोग मावे की मिठाई (यदि रंग सफेद हो तो सबसे अच्छा) पर सबसे ज्यादा कारगर होता है। बस शर्त इतनी सी है कि आप इसे सही ढंग से करें। ऎसे लोग जिससे भी अपना काम निकलवाना चाहते हैं उसके निमित्त खाने की मिठाई लाते हैं। उस पर अपने मंत्रों का प्रयोग कर सामने वाले व्यक्ति को खिला देते हैं। इस चीज को भगवान का प्रसाद या जन्मदिन की मिठाई या ऎसा कुछ भी बहाना बनाकर खिलाया जाता है। कुछ लोग दूध के जरिए भी इस प्रयोग को करते हैं।
3. इस तरह के तांत्रिक प्रयोगों से बचने का सबसे अच्छी तरीका यही है कि आप कि सी अन्य की दी गई मिठाई को कभी भूलकर भी न खाएं। यदि सामने वाला व्यक्ति ऎसा है जिसे आप मना नहीं कर सकते तो बेहतर होगा कि मिठाई का का एक छोटा-सा पीस तोड़ कर पहले उसी व्यक्ति को खिला दें। यदि वह सहज ही इसे खा लेता है तो इसका अर्थ है कि वह तांत्रिक प्रयोग नहीं कर रहा है। परन्तु यदि सामने वाला व्यक्ति आप द्वारा दी गई मिठाई को खाने में हिचकिचाएं या ना नुकूर करें तो समझ जाएं कि दाल में कुछ काला है।

इन चीजों के द्वारा भी होता है काले जादू का प्रयोग : -
खाने की मिठाई के अतिरिक्त लोग अन्य चीजों के माध्यम से भी काला जादू करते हैं। इन चीजों में फूल (चमेली, गुलाब, मोगरा आदि), इत्र, पान, इलायची, लौंग, उड़द, लौबान (धूप) आदि के जरिए किया जाता है। कुछ लोग पहनने के कपड़ों पर भी इसका प्रयोग करते हैं। अगर कोई व्यक्ति अचानक ही ऎसी कोई भी चीज आपको दें तो आपको उससे बचना चाहिए। ये सभी चीजें ऎसी हैं तो प्रचंड वशीकरण और मारक प्रयोग करने में काम ली जाती है।

बिना कोई चीज खिलाए या दिए भी होता है काले जादू का प्रयोग : 

कुछ लोग तांत्रिक प्रयोग करने के लिए एक बिल्कुल ही अलग तरीके का इस्तेमाल करते हैं। इस तरीके में सामने वाले व्यक्ति को कुछ खिलाया या दिया नहीं जाता वरन उसके घर में अथवा उसके कमरे में अभिमांत्रित वस्तु को डाल दिया जाता है। यह वस्तु कुछ भी हो सकती है, यहां तक की श्मशान की मिट्टी या कोयला भी। अगर किसी भी दिन आपको अपने घर में ऎसी कोई भी चीज मिले जो आप या आपके परिवार में किसी ने नहीं रखी हो तो भी यह तंत्र प्रयोग होने का संकेत हो सकता है।
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वशीकरण मंत्र


विद्वान को ज्ञान की बातों से वश में किया जा सकता है। 

जबकि लालची को धन से, घमंडी को मान-सम्मान देकर 
और जो मूर्ख हैं उनकी प्रशंसा करके अपने वश में किया जा सकता है। 

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो लोग लालची होते हैं उनका मोह सिर्फ धन में होता है। ऎसे लोगों से कुछ काम करवाना हो तो धन का लोभ देकर ही करवाया जा सकता है। धन देखते ही ये लोग लालच में पड़ जाते हैं। 

जो लोग अभिमानी और घमंडी स्वभाव के होते हैं, उन्हें झूठा मान-सम्मान देकर वश में किया जा सकता है। वहीं मूर्ख अपनी प्रशंसा से ही खुश हो जाते हैं। 

मूर्ख लोगों को वश में करने के लिए वैसा ही करें जैसा वे चाहते हैं 

दुनिया के हर स्त्री-पुरुष का स्वभाव, गुण तथा इच्छाएं अलग अलग होती हैं, यही कारण है कि हर व्यक्ति को प्रसन्न तथा संतुष्ट करने के लिए अलग अलग कार्यों को करने का तरीका बताया गया है 


नींबू-लौंग के ये टोटके 24 घंटों में दूर करेंगे आपकी हर समस्या





1. यदि घर में किसी बच्चे या बड़े व्यक्ति को बुरी नजर लग जाए तो उसके सिर से पैर तक सात बार नींबू वार लें। इसके बाद इस नींबू के चार टुकड़े करके किसी सुनसान स्थान या किसी तिराहे पर फेंक दें। ध्यान रखें नींबू के टुकड़े फेंकने के बाद पीछे न देखें और सीधे घर आ जाएं। नजर तुरंत दूर हो जाएगी। 

2. यदि किसी व्यक्ति का व्यापार ठीक से नहीं चल रहा है तो उसे शनिवार के दिन नींबू का तांत्रिक उपाय करना चाहिए। इस उपाय के अनुसार एक नींबू को दुकान की चारों दीवारों से स्पर्श कराएं। इसके बाद नींबू को चार टुकड़ों में अच्छे से काट लें और चौराहे पर जाकर चारों दिशाओं में नींबू का एक-एक टुकड़ा फेंक दें। इससे दुकान, व्यापार स्थल की नेगेटिव एनर्जी नष्ट हो जाएगी।

3. घर की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के लिए घर में नींबू का पेड़ लगाए। नींबू के पेड़ से आसपास का वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहता है। इसके साथ ही नींबू का पेड़ घर में लगाने से घर का वास्तु दोष भी दूर होता है।

4. प्रचलित मान्यता के अनुसार अगर सुई लगा नींबू किसी बीमार के सिर पर से 7 बार वार (उसार) कर चौराहे पर रख देना चाहिए। चौराहे से जाते हुए जो भी व्यक्ति उस नींबू को पार कर चला जाएगा या उसे स्पर्श करेगा तो बीमार व्यक्ति की सारी बीमारी उसको को लग जाती है।

5. यदि कोई व्यक्ति अचानक ही बीमार हो जाए तथा उस पर दवाओं का कोई असर न हों तो इसके लिए भी नींबू का उपाय किया जाता है। ऐसी स्थिति में एक साबूत नींबू के उपर काली स्याही से 307 लिख दें और उस व्यक्ति के उपर उल्टी तरफ से 7 बार उतारें। इसके पश्चात उसी नींबू को चार भागों में इस प्रकार से काटें कि वह नीचें से जुड़े रहें। और फिर उसी नींबू को घर से बाहर किसी निर्जन स्थान पा फेंक दें। इस उपाय को करने से पीडि़त व्यक्ति 24 घंटों के अंदर ही स्वस्थ हो जायेगा।

6. अगर आपको कड़ी मेहनत के बाद भी बार-बार असफलता मिल रही है तो नींबू का एक छोटा सा उपाय आपके सारे काम बना देगा। इसके लिए आप एक नींबू और 4 लौंग लेकर किसी निकट के हनुमान मंदिर में जाएं। वहां हनुमानजी की प्रतिमा के सामने बैठकर नींबू के ऊपर चारों लौंग लगा दें, इसके बाद हनुमानचालिसा का पाठ करें। पाठ करने के बाद हनुमानजी से सफलता दिलवाने की प्रार्थना करें और इस नींबू को जेबा में लेकर जाएं। आपको निश्चित ही सफलता मिलेगी।

ध्यान रखें :-
(1) जब भी टोटका करने के बाद नींबू फेंके तो पीछे मुड़कर कभी न देखें। सीधे अपने घर की तरफ आ जाएं।
(2) कभी-कभी रोड पर नींबू-मिर्च पड़ी हुई दिख जाती है, किसी चौराहे या तिराहे पर कोई नींबू या नींबू के टुकड़े पड़े रहते हैं तो ध्यान रखें उन हमारा पैर नहीं लगाना चाहिए।

7. धन की मनोकामना पूरी करने के लिए
मंगलवार के दिन 22 पीपल के पत्ते लें। उन्हें धोकर रखें। इसके बाद पूर्व दिशा में मुंह करके हर पत्ते पर "राम" लिखें तथा इन्हें उसी दिन हनुमानजी पर चढ़ा आए। आपको तुरंत ही धन लाभ होना शुरू हो जाएगा। ध्यान रखें यह प्रयोग केवल मंगलवार के दिन ही आरंभ होना चाहिए।

8. ऋण मुक्ति के लिए
शुक्ल पक्ष (अमावस्या से पूर्णिमा के बीच का समय) में मंगलवार को आटे में गुड़ मिलाकर पुए बनाकर हनुमानजी के मंदिर में चढ़ाएं और गरीबों को खिलाएं। इससे सभी कर्जे दूर हो जाएंगे। 
घर में झगड़ा बंद करवाने के लिए

9. यदि किसी के घर में बहुत ज्यादा क्लेश या झगड़ा रहता है तो वह इस उपाय को कर सकता है। जब भी घर में आटा पिसवाना हो तो केवल सोमवार को ही पिसवाएं। पिसवाने से पहले उसमें थोड़े से काले चने डाल दें। इस मिश्रित आटे को ज्यों-ज्यों घर के सभी लोग खाएंगे, घर के सभी झगड़े दूर हो जाएंगे।

10. भूत-पिशाच की समस्या 
घर के किसी बीमार व्यक्ति, जिसकी जल्द ही मौत होने वाली हो, के ऊपर से सुई लगा नींबू वार कर चौराहे पर रख देना और सामने खड़े होकर यह प्रतीक्षा करना कि शायद कोई व्यक्ति उस नींबू को लांघ जाएगा. अगर आपकी नजरों के सामने कोई ऐसा कर लेता है तो आपको यह आश्वासन हो जाता है कि जिस व्यक्ति की लंबी उम्र की कामना किए आपने यह सब किया है, उसकी बीमारी उसे लग जाएगी जिसने नींबू को लांघा है और आपका परिजन पूरी तरह ठीक हो जाएगा, यह एक ऐसा टोटका है, जिसे अधिकांशत: प्रयोग में लाया जाता है. लोगों का मानना है कि ऐसा करने से एक व्यक्ति के कष्ट दूसरे व्यक्ति तक बड़ी आसानी से पहुंचाए जा सकते हैं. मानवीय दृष्टिकोण से तो यह सही नहीं है लेकिन जो अपने लोगों की जान बचाना चाहता है, उन्हें खुश देखना चाहता है उसे मजबूरन ऐसा करना पड़ता है,  हम आपको बताते हैं कि नींबू का टोटका कब और क्यों प्रयोग में लाया जाता है.

11. व्यापार में होने वाले नुकसान से बचने के लिए: प्राय: ऐसा माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति व्यापार में लगातार हानि का ही सामना कर रहा है या किसी के घरेलू हालात खराब हैं तो अगर वह अपने ऊपर से सुई लगा नींबू वार कर चौराहे पर रख दे या घर के बाहर नींबू मिर्ची लटका दे तो उसके हालात सुधर सकते हैं. इसीलिए आपने कई बार चौराहों पर सुई से जुदा नींबू और घरों या दुकानों के बाहर नींबू-मिर्ची लटकी जरूर देखी होगी.
बीमारी से बचने के लिए: बहुत से लोग इस बात पर विश्वास करते हैं कि अगर सुई लगा नींबू किसी बीमार के सिर पर से 7 बार वार कर चौराहे पर रख दिया जाए और अगर उस नींबू को पार कर कोई चला जाए तो उस बीमार व्यक्ति की सारी बीमारी उस व्यक्ति को लग जाती है

12. भूत बाधा को दूर करने के लिए: भारत अंधविश्वासों में यकीन करने वाला देश है. यहां कदम-कदम पर भूत-प्रेत-पिशाचों से जुड़ी कहानियां सुनाई देती हैं. लोगों का मानना है कि अगर किसी व्यक्ति पर किसी बुरी आत्मा का साया है तो उसके ऊपर से नींबू वार कर चौराहे पर रख दें. अगर कोई व्यक्ति उसे लांघकर चला जाता है या किसी गाड़ी के नीचे वह नींबू कुचला जाता है तो वह आत्मा उस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाती है


13. धन प्राप्ति के टोटके: हनुमान जी की पूजा करने वाले भक्तों को हर परेशानी से बजरंगबली बचाते हैं. बजरंगबली को लेकर कई टोटके भी हैं. कहा जाता है कि इन टोटक़ों को ‍विशेष रूप से धन प्राप्ति के लिए किया जा सकता है. इतना ही नहीं ये टोटके हर प्रकार का अनिष्ट भी दूर करते हैं.
पीपल के वृक्ष की जड़ में तेल का दीपक जला दें. फिर वापस घर आ जाएं और पीछे मुड़कर न देखें. इससे आपको धन लाभ के साथ ही हर बिगड़ा काम बन जाएगा.

कहीं आपके साथ भी तो ऐसा नही हो रहा है ?



यदि जीवन में निरंतर समस्याए आ रही है और यह प्रतीत हो रहा है की जीवन में कही कुछ सही नही हो रहा तो निश्चित रूप से हो सकता है आप पैरानार्म्ल समस्याओं से ग्रस्त है । आपके आस- पास नेगेटिव एनर्जी है । यदि ऐसा है, तो कुछ पहलुओ पर जरुर गौर करे ।

1) पूर्णिमा या अमावस्या में घर के किसी सदस्य का Depression या Aggression काफी बढ़ जाना या स्वास्थ्य संबंधी समस्याओ का बढ़ जाना ।

2) बृहस्पतिवार, शुक्रवार या शनिवार में से किसी एक दिन प्रत्येक सप्ताह कुछ ना कुछ नकारात्मक घटनाएं घटना ।
3) किसी ख़ास रंग के कपडे पहनने पर कुछ समस्याए या स्वास्थ्य पर असर जरुर होना ।
4) घर में किसी एक सदस्य द्वारा दुसरे सदस्य को देखते ही अचानक से क्रोधित हो जाना ।
5) पुरे मोहल्ले में सिर्फ आपके घर के आस पास कुत्तों का इकट्ठा होना ।
6) घर में किसी महिला को हर माह अमावस्या में Period होना ।
7) घर में किसी ना किसी सदस्य को अक्सर चोट चपेट लगना ।
8) वैवाहिक संबंधो में स्थिरता का ना होना ।
9) घर में किसी सदस्य का उन्मादी या नशे में होना ।
10) सोते समय दबाव या स्लीपिंग पैरालाइसेस महसूस करना ।
11) डरावने स्वप्न देखना ।
12) स्वप्न में किसी के डर से खुद को भागते हुए देखना ।
13) स्वप्न में अक्सर साँप या कुत्ते को देखना ।
14) स्वप्न में खुद को सीढ़ी से नीचे उतरते देखना और आख़िरी सीढ़ी का गायब होना ।
15) किसी प्रकार के गंध का अहसास होना ।
16) पानी से और ऊँचाई से डर लगना ।
17) सोते वक्त अचानक से कुछ अनजान चेहरों का दिखना ।
18) अनायास हाथ पाँव का कांपना ।
19) अक्सर खुद के मृत्यु की कल्पना करना ।
20) व्यापार में अचानक उतार चढ़ाव का होना ।

ये मुख्य ल्क्ष्ण है जिनसे आप खुद जान सकते है, की आपको या आपके घर में किसी प्रकार की पैरानार्म्ल प्राब्लम तो नही ?


इन समस्याओं से बचने के लिए वर्षों से देश के कई भागों एक टोटका आजमाया जाता है । जब कभी आपको भी लगे कि नकारात्मक उर्जा यानी ऊपरी चक्कर है तो एक बर्तन में सरसों का तेल लेकर आग पर गर्म करें । इसमें चमड़े का एक टुकड़ा डालें। जब धुआं निकलने लगे, इसमें नींबू, थोड़ी सी फिटकरी, तीन काली चूड़ी और एक कील डाल दें। इसे पीड़ित व्यक्ति के सिर के ऊपर से सात बार घुमाएं । इसके बाद इसे कहीं गड्ढ़ा खोदकर दबा दें। इसके ऊपर एक कील ठोंक दें । माना जाता है कि ऐसा करने से पीड़ित व्यक्ति से भूत-प्रेत का साया या यूं कहें नकारात्मक शक्ति का असर दूर हो जाता है।

जिंदा लोगों की भीड़ में किस प्रकार से पहचाने भूत-प्रेत को ( How to Recognize Ghost In the Crowd of Living People



कहा जाता है कि प्रेतात्मा आदमी का रूप धर कर कहीं भी आ जा सकती है। वह आपके परिचित का रूप धरकर आपसे मनचाहा कार्य भी करवा सकती है। ऎसे में यदि कुछ खास उपायों को काम में लिया जाए तो आप हजारों लोगों के बीच में मौजूद प्रेतात्मा को पहचान सकते हैं, अपने आप को उनसे बचा सकते हैं।

1. प्रेतात्माओं की पलक नहीं झपकती।
2. उनकी आंखों को देखने पर ऎसा लगता है जैसे कि वो शून्य में घूर रहे हो, उनकी आंखों में एक असीम सी गहराई महसूस होती है जिसमें आपका दिल खो जाने को मन करता है। यदि वह आत्मा अच्छी है तो आपका उन आंखों में देखने पर अच्छा महसूस होगा जबकि बुरी आत्मा होने पर आपका दम सा घुटने लगेगा।
3. पारलौकिक विशेषज्ञों के अनुसार भूत-प्रेत, चुडैल, जिन्न आदि मानव शरीर की तरह नहीं होते। उनका शरीर पंच तत्वों के बजाय केवल तीन तत्व अग्नि, वायु और आकाश का ही बना होता है। ऎसे में प्रेतात्माओं के शरीर की परछाई नहीं बन पाती। जब भी आप किसी ऎसे व्यक्ति को देखे जिसकी रोशनी होने के बावजूद भी परछाई नहीं बन पा रही है तो निश्चित मानिए कि वह प्रेत है।
4. प्रेतात्माएं धरती के गुरूत्व बल से मुक्त होती है। उनके पैर पूरी तरह से जमीन पर नहीं अड़ते। यदि आप ध्यान से देखेंगे तो उनके शरीर और जमीन के बीच स्पष्ट अंतर दिखाई देगा जो कि इस बात का प्रतीक है वह सामान्य व्यक्ति न होकर कुछ अन्य है।
5. यदि आपके पास मिरर या कोई ऎसी वस्तु है जिसमें प्रतिबिम्ब देखा जा सके तो आप उसे भी प्रेतात्मा की पहचान करने के लिए काम में ले सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति का प्रतिबिम्ब दर्पण में नहीं दिखाई दे रहा है तो उसे भी प्रेत माना जाता है ।

भूत-प्रेत बाधा ज्योतिषीय पहचान और निदान - भूत कैसे होते हैं, कौन बनता है भूत, कैसे रहें भूतों से सुरक्षित

परिचय : - 




जन्म के पहले जिस प्रकार हम थे, उसी प्रकार मृत्यु भी कोई ऐसी घटना नहीं है, जिससे जीवन का नाश सिद्ध होता हो। नाश शब्द भी जन्म की तरह '' नश अदर्शने 'धातु से बना है; जिसका अर्थ होता है, जो अभी तक दिखायी दे रहा था, अब वह अव्यक्त हो गया। वह अपनी सूक्ष्म अवस्था में चला गया। शरीर स्थूल था-उसमें प्रविष्ट होने के कारण संरचना दिखायी दे रही थी, चेतना व्यक्त थी-पर शरीर के बाद वह नष्ट हो गई हो ऐसा नहीं है। अब इस तथ्य को विज्ञान भी मानने लगा है, अलबत्ता विज्ञान प्रकट का संबंध अभी तक मनोमय विज्ञान से जोड़ नहीं पाया, इसलिए वह परलोक, पुनर्जन्म, लोकोत्तर जीवन, भूत-प्रेत, देव-योनि, यक्ष-किन्नर, पिशाच, बैताल आदि अतींद्रिय अवस्थाओं की विश्लेषण नहीं कर पाता। पर मृत्यु के बाद जीवन नष्ट नहीं हो जाता है, यह एक अकाट्य तथ्य है और इसी आधारभूत सिद्धान्त के कारण भारतीय जीवन पद्धति का निर्धारण इस प्रकार किया गया है कि वह मृत्यु के बाद भी अपने जीवन के अनंत प्रवाह को अपने यथार्थ लक्ष्य स्वर्ग, मुक्ति और ईश्वर दर्शन की ओर मोड़े रह सके। मुख्यत: सभी धर्मग्रंथों में भूत-प्रेत बाधा, ऊपरी हवाओं, नजर दोषों आदि का उल्लेख है । कुछ ग्रंथों में इन्हें बुरी आत्मा भी कहा गया है, तो कुछ अन्य में भूत-प्रेत और जिन्न।
भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि कहा जाता है।
आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं-
1. जीवात्मा
2. प्रेतात्मा
3. सूक्ष्मात्मा
 जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं।
जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं।
यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं।
यह न जीवित स्थिति कही जा सकती है और न पूर्ण मृतक ही। जीवित इसलिए नहीं कि स्थूल शरीर न होने के कारण वे वैसा कर्म तथा उपभोग नहीं कर सकते, जो इंद्रियों की सहायता से सकते हैं ही संभव हो। मृतक उन्हें इसलिए नहीं कह सकते कि वासनाओं और आवेशों से अत्यधिक ग्रसित होने के कारण उनका सूक्ष्म शरीर काम करने लगता है, अस्तु वे अपने अस्तित्व का परिचय यत्र-तत्र देते-फिरते हैं। इस विचित्र स्थिति में पड़े होने के कारण वे किसी का लाभ एवं सहयोग तो कदाचित कर ही सकते हैं; हाँ, डराने या हानि पहुँचाने का कार्य वे सरलतापूर्वक संपन्न कर सकते हैं। इसी कारण आमतौर से लोग प्रेतों से डरते हैं और उनका अस्तित्व अपने समीप अनुभव करते ही, उन्हें भगाने का प्रयत्न करते हैं।
प्रेत योनि और पितृ योनि के बीच अंतर :-
आज के भौतिक विज्ञानियों के कथनुसार प्रेत के शरीर की रचना में 25% फिजिकल एटम और 75 % एथरिक एटम होता है। इसी प्रकार पितृ शरीर के निर्माण में  25% ईथरिक एटम और 75 % एस्ट्रल एटम होता है। अगर ईथरिक एटम सघन हो जाए तो प्रेतों का छाया चित्र लिया जा सकता है और इसी प्रकार यदि एस्ट्रल एटम सघन हो जाए तो पितरों का भी छाया चित्र लिया जा सकता है। लेकिन उसके लिए अत्यधिक सेन्सिटिव फोटो प्लेट की आवश्यकता पड़ेगी और वैसे फोटो प्लेट बनने की संभावना निकट भविष्य में नहीं है। फिर भी डिजिटल कैमरे की मदद से वर्तमान में इसके लिए जो फोटो प्लेट बने हैं उनके ऊपर अभी केवल प्रयास करने पर ही प्रेतों के चित्र लिए जा सकते हैं। ईथरिक एटम की एक विशेषता यह है कि वह मानस को प्रभावित करता है और यही कारण है कि प्रेतात्माएं अपने मानस से अपने भाव शरीर को सघन कर लेती है सा संकुचित कर लेती है और जहां चाहे वहां अपने आपको प्रकट कर देती हैं। जो अणु दूर-दूर हैं वे मानस से सरक कर समीप आ जाते हैं और भौतिक शरीर जैसी रूपरेखा उनसे बन जाती है, लेकिन अधिक समय तक वे एक दूसरे के निकट रह नहीं पाते। मानस के क्षीण होते ही वे फिर दूर-दूर जाते हैं या लोप हो जाती है और यही कारण है कि प्रेतछाया अधिक समय तक एक ही स्थान पर ठहर नहीं पाती, बल्कि कुछ ही सेकेंड्स में अदृश्य हो जाती है।

भूतों के प्रकार: हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है।

ज्योतिष के आधार पर नजर दोष का विश्लेषण : -
ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार गुरु पितृदोष, शनि यमदोष, चंद्र व शुक्र जल देवी दोष, राहुसर्प व प्रेत दोष, मंगल शाकिनी दोष, सूर्य देव दोष एवं बुध कुल देवता दोष का कारकहोता है। राहु, शनि व केतु ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह हैं। जब किसी व्यक्ति के लग्न(शरीर), गुरु (ज्ञान), त्रिकोण (धर्म भाव) तथा द्विस्वभाव राशियों पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, तो उस पर ऊपरी हवा की संभावना होती है।

लक्षण : -
नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति का शरीर कंपकंपाता रहता है। वह अक्सर ज्वर, मिरगीआदि से ग्रस्त रहता है।

कब और किन स्थितियों में डालती हैं ऊपरी हवाएं किसी व्यक्ति पर अपना प्रभाव : -

1. जब कोई व्यक्ति दूध पीकर या कोई सफेद मिठाई खाकर किसी चौराहे पर जाता है, तब ऊपरी हवाएं उस पर अपना प्रभाव डालती हैं। गंदी जगहों पर इन हवाओं का वास होता है,इसीलिए ऐसी जगहों पर जाने वाले लोगों को ये हवाएं अपने प्रभाव में ले लेती हैं। इन हवाओं का प्रभाव रजस्वला स्त्रियों पर भी पड़ता है। कुएं, बावड़ी आदि पर भी इनका वास होता है। विवाह व अन्य मांगलिक कार्यों के अवसर पर ये हवाएं सक्रिय होती हैं। इसकेअतिरिक्त रात और दिन के १२ बजे दरवाजे की चौखट पर इनका प्रभाव होता है।

2.  प्रेत योनि का रहस्यमय विज्ञान जुड़ा है पीड़ित चंद्रमा से : 
दूध व सफेद मिठाई चंद्र के द्योतक हैं। चौराहा राहु का द्योतक है। चंद्र राहु का शत्रु है।अतः जब कोई व्यक्ति उक्त चीजों का सेवन कर चौराहे पर जाता है, तो उस पर ऊपरीहवाओं के प्रभाव की संभावना रहती है।

3.  कोई स्त्री जब रजस्वला होती है, तब उसका चंद्र व मंगल दोनों दुर्बल हो जाते हैं। येदोनों राहु व शनि के शत्रु हैं। रजस्वलावस्था में स्त्री अशुद्ध होती है और अशुद्धता राहु कीद्योतक है। ऐसे में उस स्त्री पर ऊपरी हवाओं के प्रकोप की संभावना रहती है।

4. कुएं एवं बावड़ी का अर्थ होता है जल स्थान और चंद्र जल स्थान का कारक है। चंद्र राहुका शत्रु है, इसीलिए ऐसे स्थानों पर ऊपरी हवाओं का प्रभाव होता है।

5. जब किसी व्यक्ति की कुंडली के किसी भाव विशेष पर सूर्य, गुरु, चंद्र व मंगल का प्रभावहोता है, तब उसके घर विवाह व मांगलिक कार्य के अवसर आते हैं। ये सभी ग्रह शनि वराहु के शत्रु हैं, अतः मांगलिक अवसरों पर ऊपरी हवाएं व्यक्ति को परेशान कर सकती हैं।

6. दिन व रात के १२ बजे सूर्य व चंद्र अपने पूर्ण बल की अवस्था में होते हैं। शनि व राहु इनके शत्रु हैं, अतः इन्हें प्रभावित करते हैं। दरवाजे की चौखट राहु की द्योतक है। अतःजब राहु क्षेत्र में चंद्र या सूर्य को बल मिलता है, तो ऊपरी हवा सक्रिय होने की संभावनाप्रबल होती है।

7. मनुष्य की दायीं आंख पर सूर्य का और बायीं पर चंद्र का नियंत्रण होता है। इसलिएऊपरी हवाओं का प्रभाव सबसे पहले आंखों पर ही पड़ता है। यहां ऊपरी हवाओं से संबद्ध ग्रहों, भावों आदि का विश्लेषण प्रस्तुत है।

प्रेत बाधा के कारक प्रमुख  ग्रह :-  

1. राहु-केतु – जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, शनिवत राहु ऊपरी हवाओं का कारक है। यह प्रेत बाधा का सबसे प्रमुख कारक है। इस ग्रह का प्रभाव जब भी मन, शरीर, ज्ञान,धर्म, आत्मा आदि के भावों पर होता है, तो ऊपरी हवाएं सक्रिय होती हैं।
2. शनि – इसे भी राहु के समान माना गया है। यह भी उक्त भावों से संबंध बनाकर भूत-प्रेतपीड़ा देता है।
3. चंद्र – मन पर जब पाप ग्रहों राहु और शनि का दूषित प्रभाव होता है और अशुभ भावस्थित चंद्र बलहीन होता है, तब व्यक्ति भूत-प्रेत पीड़ा से ग्रस्त होता है।
4. गुरु – गुरु सात्विक ग्रह है। शनि, राहु या केतु से संबंध होने पर यह दुर्बल हो जाता है।इसकी दुर्बल स्थिति में ऊपरी हवाएं जातक पर अपना प्रभाव डालती हैं।
कुण्डली में भाव - स्थिति :-
1. लग्न – यह जातक के शरीर का प्रतिनिधित्व करता है। इसका संबंध ऊपरी हवाओं के कारक राहु, शनि या केतु से हो या इस पर मंगल का पाप प्रभाव प्रबल हो, तो व्यक्ति केऊपरी हवाओं से ग्रस्त होने की संभावना बनती है।
2. पंचम – पंचम भाव से पूर्व जन्म के संचित कर्मों का विचार किया जाता है। इस भाव परजब ऊपरी हवाओं के कारक पाप ग्रहों का प्रभाव पड़ता है, तो इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति के पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों में कमी है। अच्छे कर्म अल्प हों, तो प्रेत बाधा योग बनता है।
3. अष्टम – इस भाव को गूढ़ विद्याओं व आयु तथा मृत्यु का भाव भी कहते हैं। इसमें चंद्र और पापग्रह या ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह का संबंध प्रेत बाधा को जन्म देता है।
4. नवम – यह धर्म भाव है। पूर्व जन्म में पुण्य कर्मों में कमी रही हो, तो यह भाव दुर्बल होताहै।
अन्य - ज्योतिषीय योग
राशियां – जन्म कुंडली में द्विस्वभाव राशियों मिथुन, कन्या और मीन पर वायु तत्व ग्रहोंका प्रभाव हो, तो प्र्रेत बाधा होती है।
वार – शनिवार, मंगलवार, रविवार को प्रेत बाधा की संभावनाएं प्रबल होती हैं।
तिथि – रिक्ता तिथि एवं अमावस्या प्रेत बाधा को जन्म देती है।
नक्षत्र – वायु संज्ञक नक्षत्र प्रेत बाधा के कारक होते हैं।
योग – विष्कुंभ, व्याघात, ऐंद्र, व्यतिपात, शूल आदि योग प्रेत बाधा को जन्म देते हैं।
करण – विष्टि, किस्तुन और नाग करणों के कारण व्यक्ति प्रेत बाधा से ग्रस्त होता है।
दशाएं – मुख्यतः शनि, राहु, अष्टमेश व राहु तथा केतु से पूर्णतः प्रभावित ग्रहों कीदशांतर्दशा में व्यक्ति के भूत-प्रेत बाधाओं से ग्रस्त होने की संभावना रहती है।

किसी स्त्री के सप्तम भाव में शनि, मंगल और राहु या केतु की युति हो, तो उसके पिशाचपीड़ा से ग्रस्त होने की संभावना रहती है।
गुरु नीच राशि अथवा नीच राशि के नवांश में हो, या राहु से युत हो और उस पर पाप ग्रहोंकी दृष्टि हो, तो जातक की चांडाल प्रवृत्ति होती है।
पंचम भाव में शनि का संबंध बने तो व्यक्ति प्रेत एवं क्षुद्र देवियों की भक्ति करता है।

ऊपरी हवाओं के कुछ मुख्य ज्योतिषीय योग
1. यदि लग्न, पंचम, षष्ठ, अष्टम या नवम भाव पर राहु, केतु, शनि, मंगल, क्षीण चंद्रआदि का प्रभाव हो, तो जातक के ऊपरी हवाओं से ग्रस्त होने की संभावना रहती है। यदिउक्त
2.  ग्रहों का परस्पर संबंध हो, तो जातक प्रेत आदि से पीड़ित हो सकता है।
3. यदि पंचम भाव में सूर्य और शनि की युति हो, सप्तम में क्षीण चंद्र हो तथा द्वादश में गुरुहो, तो इस स्थिति में भी व्यक्ति प्रेत बाधा का शिकार होता है।
4. यदि लग्न पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो, लग्न निर्बल हो, लग्नेश पाप स्थान में हो अथवाराहु या केतु से युत हो, तो जातक जादू-टोने से पीड़ित होता है।
5. लग्न में राहु के साथ चंद्र हो तथा त्रिकोण में मंगल, शनि अथवा कोई अन्य क्रूर ग्रहहो, तो जातक भूत-प्रेत आदि से पीड़ित होता है।
6. यदि षष्ठेश लग्न में हो, लग्न निर्बल हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातकजादू-टोने से पीड़ित होता है। यदि लग्न पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न हो, तोजादू-टोने से पीड़ित होने की संभावना प्रबल होती है। षष्ठेश के सप्तम या दशम में स्थितहोने पर भी जातक जादू-टोने से पीड़ित हो सकता है।
7. यदि लग्न में राहु, पंचम में शनि तथा अष्टम में गुरु हो, तो जातक प्रेत शाप से पीड़ितहोता है।

ऊपरी हवाओं के सरल उपाय     
ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु शास्त्रों में अनेक उपाय बताए गए हैं। अथर्ववेद में इस हेतु कई मंत्रों व स्तुतियों का उल्लेख है। आयुर्वेद में भी इन हवाओं से मुक्ति के उपायों काविस्तार से वर्णन किया गया है। यहां कुछ प्रमुख सरल एवं प्रभावशाली उपायों का विवरण प्रस्तुत है।
* ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु हनुमान चालीसा का पाठ और गायत्री का जप तथा हवनकरना चाहिए। इसके अतिरिक्त अग्नि तथा लाल मिर्ची जलानी चाहिए।
* रोज सूर्यास्त के समय एक साफ-सुथरे बर्तन में गाय का आधा किलो कच्चा दूध लेकरउसमें शुद्ध शहद की नौ बूंदें मिला लें। फिर स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर मकान कीछत से नीचे तक प्रत्येक कमरे, जीने, गैलरी आदि में उस दूध के छींटे देते हुए द्वार तकआएं और बचे हुए दूध को मुख्य द्वार के बाहर गिरा दें। क्रिया के दौरान इष्टदेव का स्मरणकरते रहें। यह क्रिया इक्कीस दिन तक नियमित रूप से करें, घर पर प्रभावी ऊपरी हवाएंदूर हो जाएंगी।
* रविवार को बांह पर काले धतूरे की जड़ बांधें, ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिलेगी।
* लहसुन के रस में हींग घोलकर आंख में डालने या सुंघाने से पीड़ित व्यक्ति को ऊपरीहवाओं से मुक्ति मिल जाती है।
* घर के मुख्य द्वार के समीप श्वेतार्क का पौधा लगाएं, घर ऊपरी हवाओं से मुक्त रहेगा।
* उपले या लकड़ी के कोयले जलाकर उसमें धूनी की विशिष्ट वस्तुएं डालें और उस से उत्पन्न होने वाला धुआं पीड़ित  सुंघाएं। यह क्रिया किसी ऐसे व्यक्ति सेकरवाएं जो अनुभवी हो और जिसमें पर्याप्त आत्मबल हो।
* रविवार को स्नानादि से निवृत्त होकर काले कपड़े की छोटी थैली में तुलसी के आठपत्ते, आठ काली मिर्च और सहदेई की जड़ बांधकर गले में धारण करें, नजर दोष बाधा सेमुक्ति मिलेगी।
* निम्नोक्त मंत्र का १०८ बार जप करके सरसों का तेल अभिमंत्रित कर लें और उससेपीड़ित व्यक्ति के शरीर पर मालिश करें, व्यकित पीड़ामुक्त हो जाएगा।
मंत्र – ओम नमो काली कपाला देहि देहि स्वाहा।
* ऊपरी हवाओं के शक्तिशाली होने की स्थिति में शाबर मंत्रों का जप एवं प्रयोग किया जा सकता है। प्रयोग करने के पूर्व इन मंत्रों का दीपावली की रात को अथवा होलिका दहन की रात को जलती हुई होली के सामने या फिर श्मशन में १०८ बार जप कर इन्हें सिद्धकर लेना चाहिए। यहां यह उल्लेख कर देना आवष्यक है कि इन्हें सिद्ध करने के इच्छुक साधकों में पर्याप्त आत्मबल होना चाहिए, अन्यथा हानि हो सकती है।
* निम्न मंत्र से थोड़ा-सा जीरा ७ बार अभिमंत्रित कर रोगी के शरीर से स्पर्श कराएंऔर उसे अग्नि में डाल दें। रोगी को इस स्थिति में बैठाना चाहिए कि उसका धूंआ उसकेमुख के सामने आये। इस प्रयोग से भूत-प्रेत बाधा की निवृत्ति होती है।
    मंत्र –  जीरा जीरा महाजीरा जिरिया चलाय। जिरिया की शक्ति से फलानी चलिजाय॥ जीये तो रमटले मोहे तो मशान टले। हमरे जीरा मंत्र से अमुख अंग भूत चले॥ जायहुक्म पाडुआ पीर की दोहाई॥
* एक मुट्ठी धूल को निम्नोक्त मंत्र से ३ बार अभिमंत्रित करें और नजर दोष से ग्रस्तव्यक्ति पर फेंकें, व्यक्ति को दोष से मुक्ति मिलेगी।
   मंत्र – तह कुठठ इलाही का बान। कूडूम की पत्ती चिरावन। भाग भाग अमुक अंक सेभूत। मारुं धुलावन कृष्ण वरपूत। आज्ञा कामरु कामाख्या। हारि दासीचण्डदोहाई।
* थोड़ी सी हल्दी को ३ बार निम्नलिखित मंत्र से अभिमंत्रित करके अग्नि में इसतरह छोड़ें कि उसका धुआं रोगी के मुख की ओर जाए। इसे हल्दी बाण मंत्र कहते हैं।
मंत्र – हल्दी गीरी बाण बाण को लिया हाथ उठाय। हल्दी बाण से नीलगिरी पहाड़थहराय॥ यह सब देख बोलत बीर हनुमान। डाइन योगिनी भूत प्रेत मुंड काटौ तान॥आज्ञा कामरु कामाक्षा माई। आज्ञा हाड़ि की चंडी की दोहाई॥
*जौ, तिल, सफेद सरसों, गेहूं, चावल, मूंग, चना, कुष, शमी, आम्र, डुंबरक पत्ते औरअषोक, धतूरे, दूर्वा, आक व ओगां की जड़ को मिला लें और उसमें दूध, घी, मधु और गोमूत्रमिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। फिर संध्या काल में हवन करें और निम्न मंत्रों का १०८बार जप कर इस मिश्रण से १०८ आहुतियां दें।
  मंत्र – मंत्र रू ओम नमः भवे भास्कराय आस्माक अमुक सर्व ग्रहणं पीड़ा नाशनं कुरु-कुरु स्वाहा।
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 धूंधुकारी को प्रेत योनि की प्राप्ति और उससे उद्धार -




श्रीमद् भागवत - पाँचवा अध्याय -
आत्मदेव ब्राम्हण संतान न होने से दुखी था | वन में महात्मा ने उसे एक फल देकर कहा की इसे अपनी स्त्री को खिला दे | उसकी पत्नी धूंधुलि ने फल गाय को खिला दिया | धूंधुलि ने अपनी बहिन के साथ मिलकर नाटक रचा | उसकी बहिन उस समय गर्भवती थी | धूंधुलि खुद गर्भवती होने का नाटक करती रही | समय आने पर उसने अपनी बहिन का बच्चा ले लिया और लोगो को कह दिया की उसकी बहिन को मरा हुआ बच्चा हुआ है | इस काम के लिए बहिन के पति को बहुत सा धन भी दिया | इस तरह धूंधुलि ने अपने बच्चे का नाम धूंधुकारी रखा | कुछ समय बाद गाय को भी मनुष्यकार बच्चा हुआ | गाय के उसके जेसे कान होने से आत्मदेव ने उसका नाम गौकर्ण रखा | धूंधुकारी बहुत ही दुष्ट तथा हिंसक प्रवृति का था | इसके विपरीत गौकर्ण ज्ञानी और दानी था | धूंधुकारी से तंग आकर आत्मदेव वन को चले गये |
पिता के वन चले जाने पर एक दिन धूंधुकारी ने अपनी माता को बहुत पीटा और कहा- बता! धन कहाँ रखा है? नहीं तो जलती लकड़ी से तेरी खबर लूँगा | उसकी इस धमकी से डर कर तथा दुखी होकर धूंधुलि ने कुएँ में गिर कर प्राण त्याग दिए | धूंधुकारी पाँच वैश्याओं के साथ घर में रहने लगा |

वह जहाँ तहाँ से बहुत सा धन चुरा के लाता | चोरी का माल देख कर एक दिन वैश्याओं ने सोचा- "यह नित्य ही चोरी करता है | इसे अवश्य ही राजा पकड़ लेगा और कड़ा दंड देगा | इसे मारकर, सारा माल लेकर हम कहीं चली जाएँगी |" ऐसा निश्चय करके उन्होने सोए हुए धूंधुकारी को रस्सी से कस दिया और गले में फाँसी लगाकर मारने का प्रयत्न किया | इससे भी वह नही मारा तो उस के मुख पर जलते हुए अंगारे डाले | इससे वह तड़प तड़प कर मर गया | उन्होने उसके शरीर को एक गड्ढे में डाल कर गाढ दिया |

धूंधुकारी अपने कर्मों के कारण भयंकर प्रेत हुआ | वह सर्वदा दसों दिशाओं में भटकता रहता था | और भूख प्यास से व्याकुल होने के कारण "हा देव !! हा देव !!" चिल्लाता रहता था परंतु उसे कोई आश्रय नही मिलता |

जब गौकर्ण को अपने भाई की मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होने उसका गयाजी में श्राद्ध किया | वह जहाँ भी जाते, धूंधुकारी के नाम से दान करते | घूमते घूमते वह अपने नगर पहुँचे | रात्रि के समय अपने घर के आँगन मे सो गये | अपने भाई गौकर्ण को सोया देख धूंधुकारी ने अपना विकट रूप दिखाया | वह कभी भेड़ा, हाथी, भेंसा तो कभी इंद्र, अग्नि का रूप धारण करता | अंत में वह मनुष्यकार में प्रकट हुआ | ये विपरीत अवस्थाएं देख कर गौकर्ण ने निश्चय कर लिया था की यह अवश्य ही दुर्गति को प्राप्त हुआ है |

तब उन्होनें धैर्य पूर्वक पूछा- "तू कौन है? रात्रि के समय एसा भयानक रूप क्यूँ दिखा रहा है? तेरी यहा दशा कैसे हुई?" गौकर्ण के इस प्रकार पूछने पर प्रेत ज़ोर ज़ोर से रोने लगा | उसने कहा- मैं तुम्हारा भाई धूंधुकारी हूँ | मैं महान अज्ञान में चक्कर काट रहा था | मैने लोगों की बड़ी हिंसा की | इसी से मैं प्रेत योनि में पड़कर दुर्दशा भोग रहा हूँ | भाई! तुम दया के सागर हो | कैसे भी करके मुझे इस प्रेत योनि से मुक्ति दिलाओ |

गौकर्ण ने कहा- मैने तुम्हारे लिए विधि पूर्वक गयाजी में पिंड दान किया | फिर भी तुम्हे मुक्ति नहीं मिली | मुझे क्या करना चाहिए? प्रेत बोला- मेरी मुक्ति सैंकड़ों गयाश्राद्ध से भी नहीं हो सकती | गौकर्ण ने कहा- तब तो तुम्हारी मुक्ति असंभव है | तुम अभी निर्भय होकर अपने स्थान पर रहो | मैं विचार करके तुम्हारी मुक्ति के लिए उपाय करूँगा |

गौकर्ण की आग्या पाकर धूंधुकारी वहाँ से चला गया | सुबह होने पर गौकर्ण ने लोगों को सारी बात बताई | उनमें से जो विद्वान थे, उन्होने कहा की इस विषय में जो सूर्यनारायण कहें वही करना चाहिए | अतः गौकर्ण ने अपने तपोबल से सूर्य की गति को रोक दिया | उन्होने स्तुति की-भगवान! आप सारे संसार के साक्षी हैं | कृपा करके मुझे धूंधुकारी की मुक्ति का उपाय बताएँ | तब सूर्यनारायण ने कहा- श्रीमद् भागवत से मुक्ति हो सकती है | उसका सप्ताहपरायण करो |

गौकर्ण जी निश्चय करके कथा सुनाने को तैयार हो गये | जब गौकर्ण जी कथा सुनाने को व्यासगद्दी पर बैठकर कथा कहने लगे, तब प्रेत भी वहाँ आ गया इधर उधर बैठने का स्थान ढूढ़ने लगा | तब वह सात गाँठ के एक बाँस के छेद में घुसकर बैठ गया |

सायँकाल को जब कथा को विश्राम दिया गया, तभी बाँस की एक गाँठ तड़ तड़ करती हुई फट गयी | दूसरे दिन दूसरी गाँठ | इस प्रकार से सात दिनों में सातों गाँठों को फोड़कर, बारह स्कंधो को सुनकर, धूंधुकारी प्रेत योनि से मुक्त हो गया और दिव्य रूप धारण करके सब के सामने प्रकट हुआ | उसने तुरंत गौकर्ण को प्रणाम करके कहा- भाई! तुमने कृपा करके मुझे प्रेत योनि से मुक्ति दिला दी | यह प्रेत पीड़ा का नाश करने वाली श्रीमद् भागवत कथा धन्य है |

जिस समय धूंधुकारी यह सब बातें कह रहा था, उसी समय उसके लिए वैकुंठ वासी पार्षदों सहित विमान उतरा | सब लोगों के सामने धूंधुकारी उसमें चढ़ गया | तब गौकर्ण ने कहा- भगवान के प्रिय पार्षदों! यहाँ तो अनेक श्रोतागण हैं | फिर उन सब के लिए आप लोग बहुत से विमान क्यूँ नहीं लाए? यहाँ सभी ने समान रूप से कथा सुनी है | फिर अंत में इस प्रकार का भेद क्यूँ?

भगवान के सेवकों ने कहा- इस फल भेद का कारण इनका श्रवण भेद ही है | श्रवण तो सभी ने समान रूप से किया, परंतु इसके (प्रेत) के जैसा मनन नहीं किया | इस प्रेत ने सात दिन तक निराहार श्रवण किया था | अतः मुक्ति को प्राप्त हुआ | एसा कहकर हरी कीर्तन करते हुए पार्षद वैकुंठ लोक चले गये |

श्रावण मास में गौकर्ण जी ने फिर से सप्ताह क्रम में कथा कही और उन श्रोताओं ने फिर से कथा सुनी | इस बार भक्तो के लिए विमान के साथ भगवान प्रकट हुए | भगवान स्वयं हर्षित होकर अपने पाँचजन्य शंख से ध्वनि करने लगे तथा गौकर्ण को हृदय से लगा कर अपने समान बना लिया |

यह कथा बहुत पवित्र है | एक बार के श्रवण से ही समस्त पाप राशि को नष्ट कर देती है | यदि इसका श्राद्ध के समय पाठ किया जाए, तो इससे पित्रगण को बड़ी तृप्ति मिलती है | और नित्य पाठ करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है |

भगवान शिव के डमरू मंत्र (माहेश्वर सूत्र) की उत्पत्ति एवं नटराज स्तुति




माहेश्वर सूत्रों की उत्पत्ति भगवान नटराज (शिव) के द्वारा किये गये ताण्डव नृत्य से मानी गयी है।



नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम् ।
उद्धर्त्तुकामो सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ॥

अर्थात:- "नृत्य (ताण्डव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना का उद्धार (पूर्ति) के लिये नवपञ्च (चौदह) बार डमरू बजाया। इस प्रकार  चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुई  ।

डमरु के चौदह बार बजाने से चौदह सूत्रों के रूप में ध्वनियाँ निकली, इन्हीं ध्वनियों से व्याकरण का प्रकाट्य हुआ । इसलिये व्याकरण सूत्रों के आदि-प्रवर्तक भगवान नटराज को माना जाता है । प्रसिद्धि है कि महर्षि पाणिनि ने इन सूत्रों को देवाधिदेव शिव के आशीर्वाद से प्राप्त किया जो कि पाणिनीय संस्कृत व्याकरण का आधार बना ।

श्रावण मास में शिव के डमरू से प्राप्त 14 सूत्रों को एक श्वास में बोलने का अभ्यास किया जाता है। 
 ‘अइउण, ॠलृक्, एओड़्, ऐऔच्, हयवरट्, लण्, ञमड़णनम्, झभञ्, घढधश्, जबगडदश्, खफछठथ, चटतव्, कपय्, शषसर्, हल् |’ 



माहेश्वर सूत्रों की कुल संख्या १४ है जो निम्नलिखित हैं:
१. अ इ उ ण्।
२. ॠ ॡ क्।
३. ए ओ ङ्।
४. ऐ औ च्।
५. ह य व र ट्।
६. ल ण्
७. ञ म ङ ण न म्।
८. झ भ ञ्।
९. घ ढ ध ष्।
१०. ज ब ग ड द श्।
११. ख फ छ ठ थ च ट त व्।
१२. क प य्।
१३. श ष स र्।
१४. ह ल्।



अइउण् ऋलृक् एओङ् ऐऔच् हयवरट् लण् ञमङ्णनम् झभञ् घढधष् जबगडदश् खफछटतचटतव् कपय् शषसर् हल् इति एतानि माहेश्वरा-सूत्राणि  ।  एकस्य शब्दस्य अन्तिमः अक्षरः अनुबन्धः इति कथ्यते । "आदिरन्त्यॆन सहॆता" इत्यनॆन सूत्रॆण प्रत्याहार-शब्दस्य बॊध: जायतॆ । चतुर्दश सूत्रै: ४२ + १ प्रत्याहाराणाम् उत्पत्तिर्भवति । प्रत्याहाराणाम् आधारॆणैव् सम्पूर्णम् व्याकरणम् रचितम्  ।   माहेश्‍वरसूत्राणाम् अनन्‍तरं संस्‍कृते कति वचनानि, कति लिंगानि, कति विभ‍क्‍तय:, कति कारकाणि भवन्ति इति वदाम:  ।


- : नन्दिकेश्वरकाशिका : -



नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्। 
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्।। १।।

अत्र सर्वत्र सूत्रेषु अन्त्यवर्णचतुर्दशम्।
धात्वर्थं समुपादिष्टं पाणिन्यादीष्टसिद्धये।। २।।

।। अइउण्।। १।।
अकारो ब्रह्मरूपः स्यान्निर्गुणः सर्ववस्तुषु।
चित्कलामिं समाश्रित्य जगद्रूप उणीश्वरः।। ३।।
अकारः सर्ववर्णाग्र्यः प्रकाशः परमेश्वरः।
आद्यमन्त्येन संयोगादहमित्येव जायते।। ४।।
सर्वं परात्मकं पूर्वं ज्ञप्तिमात्रमिदं जगत्।
ज्ञप्तेर्बभूव पश्यन्ती मध्यमा वाक ततः स्मृता।। ५।।
वक्त्रे विशुद्धचक्राख्ये वैखरी सा मता ततः।
सृष्ट्याविर्भावमासाद्य मध्यमा वाक समा मता।। ६।।
अकारं सन्निधीकृत्य जगतां कारणत्वतः।
इकारः सर्ववर्णानां शक्तित्वात् कारणं गतम्।। ७।।
जगत् स्रष्टुमभूदिच्छा यदा ह्यासीत्तदाऽभवत्।
कामबीजमिति प्राहुर्मुनयो वेदपारगाः।। ८।।
अकारो ज्ञप्तिमात्रं स्यादिकारश्चित्कला मता।
उकारो विष्णुरित्याहुर्व्यापकत्वान्महेश्वरः।। ९।।

।। ऋऌक्।। २।।
ऋऌक् सर्वेश्वरो मायां मनोवृत्तिमदर्शयत्।
तामेव वृत्तिमाश्रित्य जगद्रूपमजीजनत्।। १०।।
वृत्तिवृत्तिमतोरत्र भेदलेशो न विद्यते।
चन्द्रचन्द्रिकयोर्यद्वद् यथा वागर्थयोरपि।। ११।।
स्वेच्छया स्वस्य चिच्छक्तौ विश्वमुन्मीलयत्यसौ।
वर्णानां मध्यमं क्लीबमृऌवर्णद्वयं विदुः।। १२।।

।। एओङ्।। ३।।
एओङ् मायेश्वरात्मैक्यविज्ञानं सर्ववस्तुषु।
साक्षित्वात् सर्वभूतानां स एक इति निश्चितम्।। १३।।

।। ऐऔच्।। ४।।
ऐऔच् ब्रह्मस्वरूपः सन् जगत् स्वान्तर्गतं ततः।
इच्छया विस्तरं कर्त्तुमाविरासीन्महामुनिः।। १४।।

।। हयवरट्।। ५।।
भूतपञ्चकमेतस्माद्धयवरण्महेश्वरात्।
व्योमवाय्वम्बुवह्न्याख्यभूतान्यासीत् स एव हि।। १५।।
हकाराद् व्योमसंज्ञं च यकाराद्वायुरुच्यते।
रकाराद्वह्निस्तोयं तु वकारादिति सैव वाक्।। १६।।

।। लण्।। ६।।
आधारभूतं भूतानामन्नादीनां च कारणम्।
अन्नाद्रेतस्ततो जीवः कारणत्वाल्लणीरितम्।। १७।।

।। ञमङणनम्।। ७।।
शब्दस्पर्शौ रूपरसगन्धाश्च ञमङणनम्।
व्योमादीनां गुणा ह्येते जानीयात् सर्ववस्तुषु।। १८।।

।। झभञ्।। ८।।
वाक्पाणी च झभञासीद्विराड्रूपचिदात्मनः।
सर्वजन्तुषु विज्ञेयं स्थावरादौ न विद्यते।।
वर्गाणां तुर्यवर्णा ये कर्मेन्द्रियमया हि ते।। १९।।

।। घढधष्।। ९।।
घढधष् सर्वभूतानां पादपायू उपस्थकः।
कर्मेन्द्रियगणा ह्येते जाता हि परमार्थतः।। २०।।

।। जबगडदश्।। १०।।
श्रोत्रत्वङ्नयनघ्राणजिह्वाधीन्द्रियपञ्चकम्।
सर्वेषामपि जन्तूनामीरितं जबगडदश्।। २१।।

।। खफछठथचटतव्।। ११।।
प्राणादिपञ्चकं चैव मनो बुद्धिरहङ्कृतिः।
बभूव कारणत्वेन खफछठथचटतव्।। २२।।
वर्गद्वितीयवर्णोत्थाः प्राणाद्याः पञ्च वायवः।
मध्यवर्गत्रयाज्जाता अन्तःकरणवृत्तयः।। २३।।

।। कपय्।। १२।।
प्रकृतिं पुरुषञ्चैव सर्वेषामेव सम्मतम्।
सम्भूतमिति विज्ञेयं कपय् स्यादिति निश्चितम्।। २४।।

।। शषसर्।। १३।।
सत्त्वं रजस्तम इति गुणानां त्रितयं पुरा।
समाश्रित्य महादेवः शषसर् क्रीडति प्रभुः।। २५।।
शकारद्राजसोद्भूतिः षकारात्तामसोद्भवः।
सकारात्सत्त्वसम्भूतिरिति त्रिगुणसम्भवः।। २६।।

।। हल्।। १४।।
तत्त्वातीतः परं साक्षी सर्वानुग्रहविग्रहः।
अहमात्मा परो हल् स्यामिति शम्भुस्तिरोदधे।। २७।।

।। इति नन्दिकेश्वरकृता काशिका समाप्ता।।
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श्री नटराज स्तुति जरूर पढ़ें ।

नटराज शिव कलाओं एवं ज्ञान प्रदान करने वाले परं गुरु हैं, शिव का तांडव प्रसिद्ध है | शिव के आनंद तांडव के साथ ही सृजन का आरंभ होता है एवं रौद्र तांडव के साथ ही सम्पूर्ण विश्व शिव में पुनः समाहित हो जाते हैं |

- : नटराज स्तुति : -




सत सृष्टि तांडव रचयिता नटराज राज नमो नमः | 1
हे नटराज आप ही अपने तांडव द्वारा सृष्टि की रचना करने वाले हैं| हे नटराज राज आपको नमन है |

हे आद्य गुरु शंकर पिता नटराज राज नमो नमः | 2
हे शंकर आप ही परं पिता एवं आदि गुरु हैं. हे नटराज राज आपको नमन है|

गंभीर नाद मृदंगना धबके उरे ब्रह्मांडना नित होत नाद प्रचंडना नटराज राज नमो नमः| 3
हे शिव, ये संपूर्ण विश्व आपके मृदंग के ध्वनि द्वारा ही संचालित होता है| इस संसार में व्याप्त प्रत्येक ध्वनि के श्रोत आप हे हैं| हे नटराज राज आपको नमन है |

सिर ज्ञान गंगा चंद्र चिद ब्रह्म ज्योति ललाट मां विष नाग माला कंठ मां नटराज राज नमो नमः| 4

हे नटराज आप ज्ञान रूपी चंद्र एवं गंगा को धारण करने वाले हैं, आपका ललाट से दिव्या ज्योति का स्रोत है| हे नटराज राज आप विषधारी नाग को गले में धारण करते हैं| आपको नमन है |

तवशक्ति वामे स्थिता हे चन्द्रिका अपराजिता | चहु वेद गाएं संहिता नटराज राज नमो नमः| 5
हे शिव (माता) शक्ति आपके अर्धांगिनी हैं, हे चंद्रमौलेश्वर आप अजय हैं. चार वेदा आपकी ही सहिंता का गान करते हैं. हे नटराज राज आपको नमन है |

Saturday 12 December 2015

गुरुवार को नहीं करने चाहिए ये काम, जानिए क्यों ?

ब्रह्मांड में स्थित नौ ग्रहों में से गुरु वजन में सबसे भारी ग्रह है। यही कारण है कि इस दिन हर वो काम जिससे कि शरीर या घर में हल्कापन आता हो। ऐसे कामों को करने से मना किया जाता है क्योंकि ऐसा करने से गुरु ग्रह हल्का होता है। यानी कि गुरु के प्रभाव में आने वाले कारक तत्वों का प्रभाव हल्का हो जाता है। गुरु धर्म व शिक्षा का कारक ग्रह है। गुरु ग्रह को कमजोर करने से शिक्षा में असफलता मिलती है। साथ ही धार्मिक कार्यों में झुकाव कम होता चला जाता है ।


गुरुवार को किए गए ये कार्य रोकते हैं पति, संतान की उन्नति
शास्त्रों में गुरुवार को महिलाओं को बाल धोने से इसलिए मनाही की गई है। क्योंकि महिलाओं की जन्मकुंडली में बृहस्पति पति का कारक होता है। साथ ही बृहस्पति ही संतान का कारक होता है। इस प्रकार अकेला बृहस्पति ग्रह संतान और पति दोनों के जीवन को प्रभावित करता है। बृहस्पतिवार को सिर धोना बृहस्पति को कमजोर बनाता है जिससे कि बृहस्पति के शुभ प्रभाव में कमी होती है। इसी कारण से इस दिन बाल भी नहीं कटवाना चाहिए जिसका असर संतान और पति के जीवन पर पड़ता है। उनकी उन्नति बाधित होती है।

गुरुवार को नहीं करना चाहिए नेल कटिंग और शेविंग भी :-
शास्त्रों में गुरु ग्रह को जीव कहा गया है। जीव मतलब जीवन। जीवन मतलब आयु। गुरुवार को नेल कटिंग और शेविंग करना गुरु ग्रह को कमजोर करता है। जिससे जीवन शक्ति दुष्प्रभावित होती है। उम्र में से दिन कम करती है।
गुरु ग्रह का कमजोर होना किस तरह करता है धन की कमी :-
किसी भी जन्मकुंडली में दूसरा और ग्यारहवां भाव धन के स्थान होते हैं। गुरु ग्रह इन दोनों ही स्थानों का कारक ग्रह होता है। गुरुवार को गुरु ग्रह को कमजोर किए जाने वाले काम करने से धन की वृद्धि रुक जाती है। धन लाभ की जो भी स्थितियां बन रही हों। उन सभी में रुकावट आने लगती है। सिर धोना, भारी कपड़े धोना, बाल कटवाना, शेविंग करवाना, शरीर के बालों को साफ करना, फेशियल करना, नाखून काटना, घर से मकड़ी के जाले साफ करना, घर के उन कोनों की सफाई करना जिन कोनों की रोज सफाई नहीं की जा सकती हो। ये सभी काम गुरुवार को करना धन हानि का संकेत हैं। तरक्की को कम करने का संकेत हैं।

बृहस्पति को किस तरह कमजोर करते है घर में किए गए ये कार्य :-
जिस प्रकार से बृहस्पति का प्रभाव शरीर पर रहता है। उसी प्रकार से घर पर भी बृहस्पति का प्रभाव उतना ही अधिक गहरा होता है। वास्तु अनुसार घर में ईशान कोण का स्वामी गुरु होता है। ईशान कोण का संबंध परिवार के नन्हे सदस्यों यानी कि बच्चों से होता है। साथ ही घर के पुत्र संतान का संबंध भी इसी कोण से होता है। ईशान कोण धर्म और शिक्षा की दिशा है। घर में अधिक वजन वाले कपड़ों को धोना, कबाड़ घर से बाहर निकालना, घर को धोना या पोछा लगाना। घर के ईशान कोण को कमजोर करता है। उससे घर के बच्चों, पुत्रों, घर के सदस्यों की शिक्षा, धर्म आदि पर शुभ प्रभाव में कमी आती है।

रूक सकता है प्रमोशन भी :-
जन्मकुंडली में गुरु ग्रह के प्रबल होने से उन्नति के रास्ते आसानी से खुलते हैं। यदि गुरु ग्रह को कमजोर करने वाले कार्य किए जाए तो प्रमोशन होने में रुकावटें आती है।

ये दिन है लक्ष्मी प्राप्ति का इसलिए देवी लक्ष्मी भी होती है प्रभावित :-

गुरुवार लक्ष्मी नारायण का दिन होता है। इस दिन लक्ष्मी और नारायण का एक साथ पूजन जीवन में खुशियों की अपार वृद्धि कराने वाला होता है। इस दिन लक्ष्मी और नारायण की एक साथ पूजन करने से पति- पत्नी के बीच कभी दूरिया नहीं आती है। साथ ही धन की वृद्धि होती है।