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Tuesday 8 December 2015

लक्ष्मी जी को आकर्षित करने वाली वस्तुएं

लक्ष्मी जी को आकर्षित करने वाली वस्तुएं:-


तंत्र शास्त्र में कई ऐसी वस्तुएं है, जिन्हें घर में रखने से मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। अगर आप इन्हें अपने घर में रखें, तो जरूर आपका जीवन धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाएगा।
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1. Laxmi Bisa Yantra


Shankh : Dakshinavarti shankh for Wealth

2. दक्षिणावर्ती शंख : -


दक्षिणावर्ती शंख के अनेक लाभ हैं,
लेकिन इसे घर में रखने से पहले इसका शुद्धिकरण अवश्य करना चाहिए।

 इस विधि से करें शुद्धिकरण :-
 लाल कपड़े के ऊपर दक्षिणावर्ती शंख को रखकर इसमें गंगाजल भरें और कुश के आसन पर बैठकर इस मंत्र का जप करें-
ऊँ श्री लक्ष्मी सहोदराय नम: इस मंत्र की कम से कम 5 माला जप करें।
ये हैं दक्षिणावर्ती शंख के उपाय
1- दक्षिणावर्ती शंख को अन्न भण्डार में रखने से अन्न, धन भण्डार में रखने से धन, वस्त्र भण्डार में रखने से वस्त्र की कभी कमी नहीं होती। शयन कक्ष में इसे रखने से शांति का अनुभव होता है।
2- इसमें शुद्ध जल भरकर, व्यक्ति, वस्तु, स्थान पर छिड़कने से दुर्भाग्य, अभिशाप, तंत्र-मंत्र आदि का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
3- किसी भी प्रकार के टोने-टोटके इस शंख के आगे निष्फल हो जाते हैं। दक्षिणावर्ती शंख जहां भी रहता है, वहां धन की कोई कमी नहीं रहती।
4- इसे घर में रखने से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा स्वत: ही समाप्त हो जाती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार होता है।
 Astrologer Govind


दक्षिणावर्ती शंख को माँ अष्टलक्ष्मी का साक्षात् स्वरुप माना जाता है। सामान्य पूजन से लेकर विविध तंत्र प्रयोगों में इस शंख का उपयोग किया जाता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार दक्षिणावर्ती शंख को विधि-विधान पूर्वक जल में रखने से कई प्रकार की बाधाएं शांत हो जाती है और भाग्य का दरवाजा खुल जाता है। साथ ही धन संबंधी समस्याएं भी समाप्त हो जाती हैं।
दीपावली, धन त्रयोदशी, होली, गुरु पुष्य योग या विजयादशमी पर पूर्ण विधान से विधिवत सिद्ध किये गए दक्षिणावर्ती शंख से आप निम्न लाभ उठा सकते हैं।
आर्थिक लाभ:
- दक्षिणावर्ती शंख जहां भी रहता है, वहां धन की कोई कमी नहीं रहती।
- दक्षिणावर्ती शंख को अन्न भण्डार में रखने से अन्न, धन भण्डार में रखने से धन, वस्त्र भण्डार में रखने से वस्त्र की कभी कमी नहीं होती।
- इसमें जल भर भगवन विष्णु का अभिषेक करने से माता लक्ष्मी और भगवन विष्णु दोनों का अनुग्रह प्राप्त होता है और व्यक्ति हर क्षेत्र में सफलता के साथ समस्त भौतिक सुख और दैवीय कृपा पाता है।
- इसमें दूध मिश्रित जल भर ऋण नाशन स्तोत्र का पाठ करते हुए भगवन शिव का अभिषेक करने से समस्त ऋणों का नाश अतिशीघ्र होता है।
परिवार में लाभ:
-यदि पति- पत्नी में लगातार मन मुटाव या झगडा होता हो तो शयन कक्ष में इसे श्वेत वस्त्र में लपेट कर शुद्ध स्थान में रखने से दोनों के मन और घर में शांति रहती है।
- प्रत्येक पूर्णिमा पर और ज़रूरत पड़ने पर कभी भी इसमें रात्रि में शुद्ध जल भरकर घर के प्रत्येक व्यक्ति, वस्तु, स्थान पर छिड़कने से दुर्भाग्य, अभिशाप, तंत्र-मंत्र आदि का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
- किसी भी प्रकार के टोने-टोटके इस शंख के आगे निष्फल हो जाते हैं।
- प्रातःकाल इसके दर्शन कर कार्य में निकलने से सफलता मिलती है और मन शांत रहता है।
व्यापार में लाभ:
- विधिवत सिद्ध दक्षिणावर्ती शंख को व्यापारिक संसथान में स्थापित करने से ग्राहकों की कभी कमी नहीं होती और व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता है।
- इसमें रात्रि में गंगाजल मिश्रित दूध भर कर सुबह व्यापारिक प्रतिष्ठान में बाहर से भीतर की ओर छिड़कते हुए जाने से धंधे को किसी भी पडोसी या प्रतिद्वंदी की नज़र नहीं लगती, किसी भी प्रकार का तंत्र मंत्र द्वारा किया गया व्यापार बंध निष्फल हो जाता है।
संतान लाभ:
-इसमें रात्रि में दूध भर कर प्रातः बंध्या स्त्री को स्नान व आचमन कराने से वो पुत्रवती होती है।
- इसमें पंचामृत भरकर श्री कृष्ण या लड्डू गोपाल को संतान गोपाल मंत्र का पाठ करते हुए स्नान करा उस पंचामृत के सेवन से शीघ्र ही संतान प्राप्ति होती है और सभी ऐश्वर्य भी मिलते हैं।
स्वास्थ्य लाभ:
- इसमें रात्रि में जल भरकर प्रातः काल पीने से ह्रदय, श्वास, मस्तिष्क रोगों और अवसाद में अभूतपूर्व लाभ होता है।
- जो बच्चे कम बोलते हैं अटकते तुतलाते या हकलाते हैं उन्हें छः मास तक इसमें रात्रि में जल भर प्रातः पिलाने से सभी वाणी विकार दूर होते हैं।
- जिन लोगों को बार बार भयंकर सर्दी जुकाम कफ होता है और इस कारन आंखे कमजोर व बाल सफ़ेद हो गए हों यदि वे इसमें जल भरकर उसमे पांच मुखी रुद्राक्ष का एक दाना डाल कर सुबह सेवन करें तो उनकी इस समस्या का निवारण होगा।
- छोटे बच्चो को इसमें दूध भरकर तुलसी डालकर सेवन कराने से उनकी अधिकतर रोग और व्याधियां दूर भाग जाती हैं।
- दांत निकलते समय इसमें रखा जल या दूध पिलाने से दांत बिना किसी कष्ट
आराम से निकल आते हैं।
- जिन लोगों को गर्मी अधिक लगती है उन्हें इसमें रखे जल का सेवन करना चाहिए।
- विभिन्न स्त्री पुरुष समस्याओं का निवारण इसमें रखे जल और दूध पीने से स्वयं ही हो जाता है।
मित्रों, दक्षिणावर्ती शंख के लाभों को एक छोटे से लेख में समेट पाना अत्यंत दुष्कर है फिर भी एक छोटा सा प्रयास किया है की आप को इसके लाभ ज्ञात हों

पौराणिक प्रसंगों के अनुसार एक बार भगवान् विष्णु ने लक्ष्मीजी से यह पूछा कि आपका निवास कहाँ-कहाँ होता है? उत्तर में लक्ष्मीजी ने कहा …
अर्थात् मैं लाल कमल, नील कमल, शंख, चन्द्रमा, और शिवजी में निवास करती हूँ। इसलिए शंख को लक्ष्मीप्रिया, लक्ष्मी भ्राता, लक्ष्मी सहोदर आदि नामों से जाना जाता है। पौराणिक कथानकों के अनुसार समुद्र मंथन के समय चैदह प्रकार के रत्नों की उत्पत्ति हुई थी, उनमें से एक रत्न शंख भी था। चूँकि लक्ष्मी भी समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई थी, अतः समुद्र से उत्पन्न होने के कारण ये दोनों भाई-बहिन हैं। पौराणिक उल्लेखों में शंख को देवता का दर्जा दिया
गया है। अर्थवेद में इसे शत्रुओं को परास्त करने वाला, पापों से रक्षा करने वाला, राक्षसों और पिशाचों को वशीभूत करने वाला, रोग और दरिद्रता को दूर करने वाला, दीर्घायु प्रदान करने वाला तथा आध्व्याधि से रक्षा करने वाला वताया गया है। शंख के इस महत्व तथा लक्ष्मी का निवास स्थल होने के कारण जिस घर में शंख स्थित होता है, वहाँ लक्ष्मी जी का निवास अवश्य होता है।

शंख कई प्रकार के होते हैं और सभी प्रकारों की विशेषता एवं पूजन-पद्धति भिन्न-भिन्न है। उच्च श्रेणी के श्रेष्ठ शंखकैलाश मानसरोवर, मालद्वीप, लक्षद्वीप, कोरामंडल द्वीप समूह, श्रीलंका एवं भारत में पाये जाते हैं। शंख की आकृति (उदर) के आधार पर इसके प्रकार माने जाते हैं।
ये तीन प्रकार के होते हैं -

1. दक्षिणावृत्ति शंख,
2. मध्यावृत्ति शंख तथा
3. वामावृत्ति शंख।


जो शंख दाहिने हाथ से पकड़ा जाता है, वह दक्षिणावृत्ति शंख कहलाता है। जिस शंख का मुँह बीच में खुलता है, वह मध्यावृत्ति शंख होता है तथा जो शंख बायें हाथ से पकड़ा जाता है, वह वामावृत्ति शंख कहलाता है। शंख का उदर दक्षिण दिशा की ओर हो तो दक्षिणावृत्त और जिसका उदर बायीं ओर खुलता हो तो वह वामावृत्त शंख है। मध्यावृत्ति एवं दक्षिणावृति शंख सहज रूप से उपलब्ध नहीं होते हैं।

साधारणत: मंदिर में रखे जाने वाले शंख उल्टे हाथ के तरफ खुलते हैं और बाज़ार में आसानी से ये कहीं भी मिल जाते हैं लेकिन क्या आपने कभी ध्यान से किसी लक्ष्मी के पूराने फोटो को ध्यान से देखा है इन चित्रो में लक्ष्मी के हाथ में जो शंख होता है वो दक्षिणावर्ती अर्थात सीधे हाथ की तरफ खुलने वाले होते हैं। वामावर्ती शंख को जहां विष्णु का स्वरुप माना जाता है और दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी का स्वरुप माना जाता है।

दक्षिणावृत्त शंख घर में होने पर लक्ष्मी का घर में वास रहता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार सीधे हाथ की तरफ खुलने वाले शंख को यदि पूर्ण विधि-विधान के साथ करके इस शंख को लाल कपड़े में लपेटकर अपने घर में अलग- अलग स्थान पर रखने से विभिन्न परेशानियों का हल हो सकता है। दक्षिणावर्ती शंख को तिज़ोरी मे रखा जाए तो घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है। इसलिए घर में शंख रखा जाना शुभ माना जाता है।

हिन्दू धर्म में पूजा स्थल पर शंख रखने की परंपरा है क्योंकि शंख को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है। शंख निधि का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंगलचिह्न को घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नव -निधियों में शंख का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिन्दू धर्म में शंख का महत्त्व अनादि काल से चला आ रहा है। शंख का हमारी पूजा से निकट का सम्बन्ध है।
यहाँ तक कहा जाता है कि शंख का स्पर्श पाकर साधारण जल भी गंगाजल के सदृश पवित्र हो जाता है। मन्दिर में शंख में जल भरकर भगवान की आरती की जाती है। आरती के बाद शंख का जल भक्तों पर छिड़का जाता है जिससे वे प्रसन्न होते हैं। जो भगवान कृष्ण को शंख में फूल, जल और अक्षत रखकर उन्हें अर्ध्य देता है, उसको अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है।

शंख में जल भरकर "ऊँ नमोनारायण" का उच्चारण करते हुए भगवान को स्नान कराने से पापों का नाश होता है।

शंख का वास्‍तु महत्‍व -
शंख का सिर्फ़ धार्मिक वा देव लोक तक ही महत्त्व नहीं है। इसका वास्तु के रूप में महत्त्व भी माना जाता है। वर्तमान समय में वास्तु-दोष के निवारण के लिए जिन चीज़ों का प्रयोग किया जाता है, उनमें से यदि शंख आदि का उपयोग किया जाए तो कई प्रकार के लाभ हो सकते हैं। यह न केवल वास्तु-दोषों को दूर करता है, बल्कि आरोग्य वृद्धि, आयुष्य प्राप्ति, लक्ष्मी प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, पितृ-दोष शांति, विवाह में विलंब जैसे अनेक दोषों का निराकरण एवं निवारण भी करता है। इसे पापनाशक बताया जाता है। अत शंख का विभिन्न प्रकार की कामनाओं के लिए प्रयोग किया जा सकता है। कहते है कि जिस घर में नियमित शंख ध्वनि होती है वहां कई तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है। इनके पूजन से श्री समृद्धि आती है।[2]

शंख पूजा का महत्त्व -
सभी वैदिक कार्यों में शंख का विशेष स्थान है। शंख का जल सभी को पवित्र करने वाला माना गया है, इसी वजह से आरती के बाद श्रद्धालुओं पर शंख से जल छिड़का जाता है। साथ ही शंख को लक्ष्मी का भी प्रतीक माना जाता है, इसकी पूजा महालक्ष्मी को प्रसन्न करने वाली होती है। इसी वजह से जो व्यक्ति नियमित रूप से शंख की पूजा करता है उसके घर में कभी धन अभाव नहीं रहता। शास्त्रों के अनुसार श्रीकृष्ण का स्वरूप कहे जाने वाले माह मार्गशीर्ष में उन्हीं के पंचजन्य शंख की पूजा का विशेष महत्त्व है। अगहन मास में शंख पूजा से सभी मनोवांछित फल प्राप्त हो जाते हैं। शंख को देवता का प्रतीक मानकर पूजा जाता है एवं इसके माध्यम से अभीष्ट की प्राप्ति की जाती है। शंख की विशिष्ट पूजन पद्धति एवं साधना का विधान भी है।

3. कमल गट्टाः 


कमल गट्टा, कमल से निकलने वाला एक प्रकार का बीज है। चूंकि मां लक्ष्मी कमल पर ही विराजमान होती हैं। इसलिए इस बीज को बहुत ही चमत्कारी माना जाता है। इसे घर के पूजन स्थान पर रखना चाहिए। इससे भी मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।

4.  गोमती चक्र : 















वेसे तो ये सामान्य दिखने वाला सस्ता और द्वारिका के पास गोमतीनदी प्राकृतिक स्वरुप मे प्राप्त एक पत्थर जेसा ही हे जिसे गोमती चक्र का नाम दिया हे जो 84 रत्नों में शामिल हे | उस पर उभरे हुए चक्र को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का प्रतिक माना जाता हे जो दिखने में बहुत ही साधारण होता है लेकिन इसका प्रभाव असाधारण होता है ।

पुराणो में इस की कथा और महात्म वर्णित हे शंखासुर की कथा से संबंधित मान्यताये जुडी मिलती हे | जेसे गंडकी नदी मे से स्वयंभू शालिंग्राम नर्मदा जी मे से स्वयंभू शिवलिंग रत्नाकर मे से शंख और मोती मिलते हे और भूमि मे से रत्न .स्फटिक आदि ... बस भाव और श्रद्धा से ही इन सभी को दिव्यता मिलती हे |

तंत्र शास्त्र के अंतर्गत तांत्रिक क्रियाओं मे एक ऐसे दिव्य पत्थर का उपयोग किया जाता है  शास्त्र के तंत्र ज्ञाता इस पर अनेक विध पूजन कर इसे प्राणप्रतिष्ठा से विशेष सिद्धि दायक बना देते हे |
गोमती चक्र के साधारण तंत्र उपयोग इस प्रकार हैं .... मानसिक शांति, रोग और भय से मुक्ति, दरिद्रता से मुक्ति, कोर्ट कचेरी के मामलो मे राहत, भुत - प्रेत बाधा, शत्रुपीड़ा, संतान प्राप्ति और खास कर धन संचय

सिद्धि के इसकी विषय में अनेको मत मतान्तर देखे जाते हे | कुछ इसे स्वयं सिद्ध बताते हे ...... तो कही इसकी सिद्धि के निर्देश मिलते हे |
होली, दीवाली तथा नवरात्र आदि प्रमुख त्योहारों पर गोमती चक्र की विशेष पूजा की जाती है। ग्रहण या अमावस्या भी महत्त्वपूर्ण और सिद्धि दायक माने जाते हे | अन्य विभिन्न मुहूर्तों के अवसर पर भी इनकी पूजा लाभदायक मानी जाती है। गुरुपुष्य योग, सर्वसिद्धि योग तथा रविपुष्य योग पर इनकी पूजा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है। खासकर मारण, संमोहन, वशीकरण, स्थंभन, उच्चाटन जेसे प्रयोग में और व्यापर वृद्धि, अचल स्थिरलक्ष्मी, शत्रु भय -पीड़ा, देह व्याधि, दुस्वप्न जेसे विषयों में इसका प्रयोग अत्यंत प्रभावी देखा गया हे |

घर की चोखट पर 5 गोमती चक्र बांधे तो सारे वास्तुदोष और नकारात्मक प्रभाव दूर होते हे |
पेट संबंधी रोग होने पर 10 गोमती चक्र लेकर रात को पानी में डाल दें तथा सुबह उस पानी को पी ले इससे पेट संबंध के -रक्त से जुड़े विभिन्न जाते है रोग दूर हो। -

शीग्र धन लाभ के लिए 11 गोमती चक्र अपने पूजा स्थान मे रखे। उनके सामने श्रीयै नम: का जप करे। इससे आप जो भी कार्य या व्यवसाय करते हैं उसमे बरकत होगी और आमदनी बढनी शुरू होजाती हे।
गोमती चक्रों को यदि चांदी अथवा किसी अन्य धातु की डिब्बी मे सिंदूर तथा चावल डालकर रखे तो ये शीघ्र शुभ फल देते हैं।

इसके साथ अनेको टोटके और मान्यता जुडी हुई हे ... प्रादेशिक मत मतान्तर के रहेते कोई इसे वाममार्गी विध्या का द्योत मानते हे तो कोई मंगलदायक शुभ रत्न ..... अज्ञान से दुर्लभ रत्न भी पत्थर ही माना जाता हे | ये गोमती चक्र किस प्रमाण का होना चाहिए, किस धातु मे धारण करे, कब सिद्ध करे, कोन सी ऊँगली मे ... कब ... केसे ये सारी विशेष जानकारी फिर कभी भाव और श्रद्धा से ही तो यहाँ सब संभव हे ....
तांत्रिक उपायः
1. धन लाभ के लिए 11 गोमती चक्र अपने पूजा स्थान में रखें। उनके सामने श्री नम: का जप करें। इससे आप जो भी कार्य या व्यवसाय करते हैं उसमें बरकत होगी और आमदनी बढऩे लगेगी।
2. पेट संबंधी रोग होने पर 10 गोमती चक्र लेकर रात को पानी में डाल दें तथा सुबह उस पानी को पी लें। इससे पेट से संबंधित रोगों में लाभ मिलता है।
3. गोमती चक्रों को यदि चांदी अथवा किसी अन्य धातु की डिब्बी में सिंदूर तथा चावल डालकर रखें तो ये शीघ्र शुभ फल देते हैं।
4. होली, दीवाली तथा नवरात्र आदि प्रमुख त्योहारों पर गोमती चक्र की विशेष पूजा की जाती है। अन्य विभिन्न मुहूर्तों के अवसर पर भी इनकी पूजा लाभदायक मानी जाती है। सर्वसिद्धि योग तथा रविपुष्य योग पर इनकी पूजा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
5. यदि घर में भूत-प्रेतों का उपद्रव हो तो दो गोमती चक्र लेकर घर के मुखिया के ऊपर घुमाकर आग में डाल दें तो घर से भूत-प्रेत का जाता है उपद्रव समाप्त हो।
6. यदि घर में बीमारी हो या किसी का रोग शांत नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर उसे चांदी में पिरोकर रोगी के पलंग के पाये पर बांध दें। उसी दिन से रोगी को आराम मिलने लगता है।
7. प्रमोशन नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें और सच्चे ह्रदय से प्रार्थना करें। निश्चय ही प्रमोशन के रास्ते खुल जाएंगे।
8. व्यापार वृद्धि के लिए दो गोमती चक्र लेकर उसे बांधकर ऊपर चौखट पर लटका दें और ग्राहक उसके नीचे से निकले तो निश्चय ही व्यापार में वृद्धि होती है।
9. पति-पत्नी में मतभेद हो तो तीन गोमती चक्र लेकर घर के दक्षिण में हलूं बलजाद कहकर फेंद दें, मतभेद समाप्त हो जाएगा।
10. पुत्र प्राप्ति के लिए पांच गोमती चक्र लेकर किसी नदी या तालाब में हिलि हिलि मिलि मिलि चिलि चिलि हुक पांच बोलकर विसर्जित करें, पुत्र प्राप्ति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
11. यदि बार-बार गर्भ गिर रहा हो तो दो गोमती चक्र लाल कपड़े में बांधकर कमर में बांध दें तो गर्भ जाता है गिरना बंद हो।
12. यदि कोई कचहरी जाते समय घर के बाहर गोमती चक्र रखकर उस पर दाहिना पांव रखकर जाए तो उस दिन कोर्ट-कचहरी में सफलता प्राप्त होती है।
13. यदि शत्रु बढ़ गए हों तो जितने अक्षर का शत्रु का नाम है उतने गोमती चक्र लेकर उस पर शत्रु का नाम लिखकर उन्हें जमीन में गाड़ दें तो शत्रु परास्त हो जाएंगे।
गोमती चक्र एक दुर्लभ और चमत्कारी तंत्रोक्त वास्तु है जो कि मनुष्य के जीवन में आने वाली हर कठिनाई को दूर करने में सक्षम है। और जिसका उपयोग धन समृद्धि से सम्बंधित साधनाओ में अक्सर किया जाता है।

5.  पीली कौड़ी (Peeli Kowdi) का महत्व :


सामान्यत: कौडिय़ां हिन्द और प्रशान्त महासागर के तटों से प्राप्त होती है। पुराने समय में कौड़ी का उपयोग विभिन्न खेलों में भी किया जाता था। चौपड़ और चौपड़ जैसे खेलों में पासों की तरह कौडिय़ों का उपयोग किया जाता था। उस समय कौड़ी के रूप में पासे काफी महंगे होते थे। 


यहां बताया जा रहा एक उपाय जिससे निश्चित ही कुछ दिनों में पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी।  किसी भी शुभ मुहूर्त में बाजार से दो पीली कौड़ी लेकर आएं। यह किसी भी पूजन सामग्री की दुकान पर आसानी से मिल जाती है। घर आकर किसी विशेष दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म आदि करने के बाद महालक्ष्मी के पूजन की तैयारी करें। पूजन में देवी लक्ष्मी का चित्र या मूर्ति रखें। मूर्ति के साथ ही दोनों पीली कौडिय़ों को रखें। अब विधि-विधान से देवी लक्ष्मी की पूजा करें। पूजन के बाद दोनों पीली कौडिय़ों को अलग-अलग लाल कपड़े में बांधे। अब एक कौड़ी घर में वहां रखें जहां पैसा रखते हैं। दूसरी कौड़ी अपने साथ अपनी जेब में हमेशा रखें। ध्यान रहे कौड़ी साथ रखने के बाद अधार्मिक कार्यों से खुद को बचाकर रखें। अन्यथा यह उपाय निष्फल हो जाएगा।
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6. गुंजा :



गुंजा एक प्रकार का लाल रंग का बीज है जो देखने में बहुत सुंदर लगता है। इसके ऊपरी हिस्से पर छोटा सा काला बिंदु होता है। इसकी बेल जंगलों में वृक्षों पर लिपटी पाई जाती है। इसे रत्ती भी कहते हैं और किसी जमाने में इससे सोने की तौल की जाती थी। गुंजा का एक और प्रचलित नाम घुंघची है। यह दो प्रकार की होती है रक्तगुंजा और श्वेत गुंजा। इसके तांत्रिक प्रयोग निम्न हैं-1-बकरी के दूध में गुंजा मूल को घिस कर हथेलियों पर रगड़ने से बुद्धि का विकास होता है। मेधा,चिंतन, धारणा, विवेक तथा स्मृति की प्रखरता के लिए यह प्रयोग उत्तम होता है।2-रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो,शुक्र तथा मंगल गोचर में अनुकूल हों अथवा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हस्त नक्षत्र हो , कृष्ण चतुर्दशी को स्वाति नक्षत्र हो या पूर्णिमा को शतभिषा नक्षत्र हो, तो आधी रात को निमंत्रण पूर्वक रक्त गुंजा की  जड़ उखाड़ कर ले आएं। घर में लाकर उसकी मिट्टी हटा कर साफ कर दें फिर दूध से स्नान करवा कर धूप-दीप से पूजा करें। इस जड़ के घर में रहने से सर्प भय नहीं रहता।3- इसकी जड़ को घिस कर माथे पर तिलक की तरह लगाने से मनुष्य में सम्मोहक शक्ति आ जाती है और हर व्यक्ति उसकी बात मानने को तैयार हो जाता है।4-कहते हैं कि गुंजा की जड़ को बेल पत्र के साथ घिस कर काजल की तरह लगाने से पिछले जीवन की घटनाएं याद आ जाती हैं।इसकी जड़ को गाय के दूध में पीस कर शरीर पर लेपन करने से कोई भी तांत्रिक साधना सफल होती है यहां तक कि कभी-कभी अशरीरी आत्माएं भी वश में हो जाती हैं जो हमेशा साधक की सहायता करती हैं और उसे छोड़ कर कहीं नहीं जातीं।श्वेत गुंजा के तांत्रिक प्रयोगजिस दिन कृष्ण पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी हो उस दिन निम्न मंत्र पढ़ते हुए जंगल से श्वेत गुंजा की फली और वहीं से मिट्टी खोद कर लावे और अपने बगीचे में बो दे ।मंत्र-ऊँ श्वेतवर्णे सितपर्वतवसिनि अप्रतिहते मम कार्य कुरु ठःठःस्वाहा।फली लाने और उसे बोते समय यही मंत्र पढें़। फिर प्रति दिन सायंकाल उसमें पानी डालते रहें और इस मंत्र का जप करते रहें।ऊँ सितवर्णे श्वेतपर्वतवासिनि सर्व कार्याणि कुरु कुरु अप्रतिहते नमो नमः।गुंजा के बीजों को किसी वृक्ष के समीप बोना चाहिए तकि वह लता उसका सहारा लेकर चढ़ सके। जब लता बड़ी हो जाए तो उसी वृक्ष के नीचे बैठ कर अंगन्यास करें और उसकी पंचोपचार पूजा कर निम्न मंत्र की 21 माला जाप करें।ऊँ श्वेत वर्णे पद्म मुखे सर्व ज्ञानमये सर्व शक्तिमिति सितपर्वतवासिनि भगवति हृं मम कार्य कुरु कुरु ठःठःनमः स्वाहा।किसी भी कामना की पूर्ति के लिए संकल्प ले कर मंत्र जप करने पर कामना पूर्ण होती है।

रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो,शुक्र तथा मंगल गोचर में अनुकूल हों अथवा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हस्त नक्षत्र हो, कृष्ण चतुर्दशी को स्वाति नक्षत्र हो या पूर्णिमा को शतभिषा नक्षत्र हो, तो आधी रात को निमंत्रण पूर्वक रक्त गुंजा की  जड़ उखाड़ कर ले आएं। घर में लाकर उसकी मिट्टी हटा कर साफ कर दें फिर दूध से स्नान करवा कर धूप-दीप से पूजा करें। इस जड़ के घर में रहने से सर्प भय नहीं रहता…
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7. काली हल्दी :


काली हल्दी बड़े काम की है काली हल्दी देवी लक्ष्मी को बेहद पसंद है खास बात यह है कि काली हल्दी से जुड़े टोटके जल्दी खाली नहीं जाते हैं।
सामान्य रूप से हल्दी का रंग पीला होता है लेकिन क्या आपने कभी काली हल्दी के बारे में सुना है? नहीं सुना तो कोई बात नहीं हल्दी की एक प्रजाति काले रंग की भी होती है। जहां पीली हल्दी पूजा पाठ दवाईयों के निर्माण , मसाला , उबटन के रूप में उपयोग की जाती है। वही काली हल्दी को धन व बुद्धि का कारक माना जाता है।  काली हल्दी का सेवन तो नहीं किया जाता लेकिन इसे तंत्र के हिसाब से बहुत पूज्यनीय और उपयोगी माना जाती है। अनेक तरह के बुरे प्रभाव को कम करने का काम करती है। नीचे लिखे इसके कुछ उपायों को अपनाकर आप भी जिन्दगी से कई तरह के दुष्प्रभावों को मिटा सकते हैं।
- काली हल्दी के ७ से ९ दाने बनायें। उन्हे धागे में पिरोकर धुप, गूगल और लोबान से शोधन करने के बाद पहन लें। जो भी व्यक्ति इस तरह की माला पहनता है वह ग्रहों के दुष्प्रभावों से व टोने- टोटके व नजर के प्रभाव से सुरक्षित रहता है।
- गुरुपुष्य-योग में काली हल्दी को सिंदूर में रखकर धुप देने के बाद लाल कपड़े में लपेटकर एक दो सिक्को के साथ उसे बक्से में रख दें। इसके प्रभाव से धन की वृद्धि होने लगती है।

- काली हल्दी का चुर्ण दूध में डालकर चेहरे और शरीर पर लेप करने से त्वचा में निखार आ जाता है।
- यदि आप किसी भी नए कार्य के लिए जा रहे है तो काली हल्दी का टीका लगाकर जाएं। यह टीका वशीकरण का कार्य करता है। काली हल्दी को तंत्र के अनुसार वशीकरण के लिए जबरदस्त माना जाता है। यदि आप भी चाहते हैं कि आप किसी को वश में कर पाएं तो काली हल्दी का तिलक एक सरल तंत्रोक्त उपाय है।

काली हल्दी के तांत्रिक प्रयोग : -
 1. यदि परिवार में कोई व्यक्ति निरंतर अस्वस्थ्य रहता है, तो प्रथम गुरुवार को आटे के दो पेड़े बनाकर उसमें गीली चीने की दाल के साथ गुड़ और थोड़ी सी पिसी काली हल्दी को दबाकर रोगी व्यक्ति के ऊपर से सात बार उतार कर गाय को खिला दें। यह उपाय लगातार तीन गुरुवार करने से आश्चर्यजनक लाभ मिलेगा।
2. यदि किसी व्यक्ति या बच्चे को नजर लग गई है, तो काले कपड़े में हल्दी को बांधकर 7 बार ऊपर से उतार कर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें।
3. किसी की जन्मपत्रिका में गुरु और शनि पीडि़त हैं, तो वह जातक यह उपाय करें- शुक्लपक्ष के प्रथम गुरुवार से नियमित रूप से काली हल्दी पीसकर तिलक लगाने से ये दोनों ग्रह शुभ फल देने लगेंगे।
4. यदि किसी के पास धन आता तो बहुत किंतु टिकता नहीं है, उन्हें यह उपाय अवश्य करना चाहिए। शुक्लपक्ष के प्रथम शुक्रवार को चांदी की डिब्बी में काली हल्दी, नागकेशर व सिंदूर को साथ में रखकर मां लक्ष्मी के चरणों से स्पर्श करवा कर धन रखने के स्थान पर रख दें। यह उपाय करने से धन रुकने लगेगा।
5. यदि आपके व्यवसाय में निरंतर गिरावट आ रही है, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, चांदी का सिक्का व 11 अभिमंत्रित धनदायक कौडि़यां बांधकर 108 बार ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेव नमः’ का जाप कर धन रखने के स्थान पर रखने से व्यवसाय में प्रगतिशीलता आ जाती है।
6. यदि आपका व्यवसाय मशीनों से संबंधित है और आए दिन कोई महंगी मशीन आपकी खराब हो जाती है, तो आप काली हल्दी को पीसकर केसर व गंगा जल मिलाकर प्रथम बुधवार को उस मशीन पर स्वास्तिक बना दें। यह उपाय करने से मशीन जल्दी खराब नहीं होगी।
7. दीपावली के दिन पीले वस्त्रों में काली हल्दी के साथ एक चांदी का सिक्का रखकर धन रखने के स्थान पर रख देने से वर्ष भर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
8. यदि कोई व्यक्ति मिर्गी या पागलपन से पीडि़त हो तो किसी अच्छे मुहूर्त में काली हल्दी को कटोरी में रखकर लोहबान की धूप दिखाकर शुद्ध करें।तत्पश्चात एक टुकड़े में छेद कर धागे की मदद से उसके गले में पहना दें और नियमित रूप से कटोरी की थोड़ी सी हल्दी का चूर्ण ताजे पानी से सेंवन कराते रहें। अवश्य लाभ मिलेगा।
9. यदि आप जॉब में हो और आपका ऑफिस घर से दूर हैं या दूसरे शहर में है या ऑफिस में साथियों से कोई वाद-विवाद चलता रहता है और आप अपना ट्रांसफर कराना चाहते हैं, तो आपके लिए यहां कुछ ज्योतिषीय प्रयोग दिए जा रहे हैं। इन उपायों से ट्रांसफर में आ रही बाधाएं दूर हो जाएगी। उपाय जिनसे शीघ्र ही मनचाहे स्थान, पद, शहर में आपका ट्रांसफर हो जाएगा।
- कलौ चंडी विनायकौ (कलयुग में गणेश और दुर्गा शीघ्र सिद्धि प्रदान करते हैं) इनकी आराधना से शीघ्र ही फल मिलता है। अत: श्रीगणेश और मां दुर्गा की आराधना करें।
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8. सिद्ध श्रीयंत्र : 


ज्योतिषशास्त्र में धन वृद्घि के लिए तंत्र, मंत्र एवं यंत्र का प्रयोग किया जाता है। इनमें एक यंत्र बहुत ही प्रमुख है, इसे श्रीयंत्र के नाम से जाना जाता है। श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी। इस नाम से ही स्पष्ट है कि यह लक्ष्मी माता का यंत्र है।
श्री चक्र एक यन्त्र है जिसका प्रयोग श्री विद्या में होता है। इसे 'श्री चक्र', 'नव चक्र' और 'महामेरु' भी कहते हैं। यह सभी यंत्रो में शिरोमणि है और इसे 'यंत्रराज' कहा जाता है। वस्तुतः यह एक एक जटिल ज्यामितीय आकृति है। इस यंत्र की अधिष्ठात्री देवी भगवती त्रिपुर सुंदरी हैं। श्री यंत्र की स्थापना और पूजा से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। नवरात्रि, धनतेरस के दिन श्रीयंत्र का पूजन करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं।

श्री यंत्र के केन्द्र में एक बिंदु है। इस बिंदु के चारों ओर 9 अंतर्ग्रथित त्रिभुज हैं जो नवशक्ति के प्रतीक हैं। इन नौ त्रिभुजों के अन्तःग्रथित होने से कुल ४३ लघु त्रिभुज बनते हैं।
सिद्ध श्री यंत्र ही देता है फल
आज बाजार में रत्नों के बने श्री यंत्र आसानी से प्राप्त हो जाते हैं किंतु वे सिद्ध नहीं होते। सिद्ध श्री यंत्र में विधिपूर्वक हवन-पूजन करके देवी-देवताओं को प्रतिष्ठित किया जाता है तब श्री यंत्र समृद्धि देने वाला बनता है। यह आवश्यक नहीं कि श्री यंत्र रत्नों का बना हो। श्री यंत्र तांबे पर बना हो अथवा भोज पत्र पर जब तक उसमें मंत्र शक्ति विधिपूर्वक प्रवाहित नहीं की गई हो तब तक वह श्री प्रदाता अर्थात धन प्रदान करने वाला नहीं होता।

माना जाता है कि जिस घर में श्रीयंत्र की श्रद्घाभाव से नियमित पूजा होती है उस घर में निरंतर धन समृद्घि बढ़ती रहती है। इस संदर्भ में मान्यता यह है कि देवी लक्ष्मी ने स्वयं गुरू बृहस्पति से कहा है कि श्रीयंत्र साक्षात् लक्ष्मी का स्वरूप है। श्रीयंत्र की पूजा करें या लक्ष्मी की मतलब एक है। श्रीयंत्र में लक्ष्मी की आत्मा और शक्ति समाहित हैं।

गुरू बृहस्पति से लक्ष्मी ने तब कही थी जब पृथ्वीवासियों से रूठकर लक्ष्मी बैकुण्ठ चली गई थीं। लक्ष्मी के धरती छोड़कर चले जाने से धरती पर आकाल और दरिद्रता का साम्राज्य हो गया था। पाप प्रवृति बढ़ गयी थी। इस स्थिति को देखकर वशिष्ठ मुनि तपस्या में लीन हो गए। विशिष्ठ मुनि की तपस्या देखकर विष्णु भगवान ने देवी लक्ष्मी से पृथ्वी वासियों को क्षम करके उन पर कृपा करने का अनुरोध किया।

लेकिन देवी लक्ष्मी नहीं मानी। तब गुरू बृहस्पति ने वशिष्ठ मुनि से कहा कि अब एक ही उपाय है कि, श्रीयंत्र की स्थापना करके इसकी पूजा की जाए। गुरू बृहस्पति के नेतृत्व में श्री यंत्र का निर्माण शुरू हुआ और धनतेरस के दिन इसकी स्थापना करके विधिवत पूजा होने लगी। देवी लक्ष्मी दीपावली के दिन प्रकट हुई और कहने लगी, श्रीयंत्र की पूजा के कारण मुझे विवश होकर आना पड़ा। अब मैं आप सभी से प्रसन्न हूं, पृथ्वीवासी अब मेरी कृपा से धन समृद्घि प्राप्त कर सकेंगे।

कितना शक्तिशाली श्रीयंत्र
मान्यता है कि भोजपत्र की अपेक्षा तांबे पर बने श्रीयंत्र का फल सौ गुना, चांदी में लाख गुना और सोने पर निर्मित श्रीयंत्र का फल करोड़ गुना होता है। 'रत्नसागर' में रत्नों पर भी श्रीयंत्र बनाने की बात लिखी गई है। इनमें स्फटिक पर बने श्रीयंत्र को सबसे अच्छा बताया गया है। विद्वानों की ऐसी धारणा है कि भोजपत्र पर 6 वर्ष तक, तांबे पर 12 वर्ष तक, चांदी में 20 वर्ष तक और सोना धातु में श्रीयंत्र आजीवन प्रभावी रहता है। केसर की स्याही से अनार की कलम द्वारा भोजपत्र पर श्रीयंत्र बनाया जाना चाहिए। धातु पर निर्मित श्रीयंत्र की रेखाएं यदि खोदकर बनाई गई हों और गहरी हों, तो उनमें चंदन, कुमकुम आदि भरकर पूजन करना चाहिए।

दीपावली की रात गृहस्थ के लिए श्री यंत्र सिद्ध करना सबसे आसान है। इसके लिए पूजन के बाद लक्ष्मी मंत्र- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः की 11 माला का जाप करें। साथ ही श्री यंत्र की स्थापना कर उसका पूजन करें तो वह सिद्ध हो जाएगा।
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9. कनकधारा यंत्र  - माँ लक्ष्मी की प्रसन्नता का अचूक उपाय : -

माँ लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए जितने भी यंत्र हैं, उनमें कनकधारा यंत्र तथा स्तोत्र सबसे ज्यादा प्रभावशाली एवं अतिशीघ्र फलदायी है। हम सभी जीवन में ‍आर्थिक तंगी को लेकर बेहद परेशान रहते हैं। धन प्राप्ति के लिए हरसंभव श्रेष्ठ उपाय करना चाहते हैं। धन प्राप्ति और धन संचय के लिए पुराणों में वर्णित कनकधारा यंत्र एवं स्तोत्र चमत्कारिक रूप से लाभ प्रदान करते हैं।
धन प्राप्ति और धन संचय के लिए पुराणों में वर्णित कनकधारा यंत्र एवं स्तोत्र चमत्कारिक रूप से लाभ प्रदान करते हैं। इस यंत्र की विशेषता भी यही है कि यह किसी भी प्रकार की विशेष माला, जाप, पूजन, विधि-विधान की माँग नहीं करता बल्कि सिर्फ दिन में एक बार इसको पढ़ना पर्याप्त है। साथ ही प्रतिदिन इसके सामने दीपक और अगरबत्ती लगाना आवश्यक है।

 

।। श्री कनकधारा स्तोत्रम् ।।


अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
 अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।

मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।

बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।

प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।

दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।

इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।

गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।

श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।

नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।

सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।

यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।

सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।

दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।17।।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।

इति श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम

कनकधारा स्तोत्रम् (हिन्दी पाठ)

* जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल-तरु का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो प्रकाश श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ता रहता है तथा जिसमें संपूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, संपूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी का वह कटाक्ष मेरे लिए मंगलदायी हो।।1।।

* जैसे भ्रमरी महान कमल दल पर मँडराती रहती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बराबर प्रेमपूर्वक जाती है और लज्जा के कारण लौट आती है। समुद्र कन्या लक्ष्मी की वह मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन संपत्ति प्रदान करे ।।2।।

* जो संपूर्ण देवताओं के अधिपति इंद्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मधुहन्ता श्रीहरि को भी अधिकाधिक आनंद प्रदान करने वाली है तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है, उन लक्ष्मीजी के अधखुले नेत्रों की दृष्टि क्षण भर के लिए मुझ पर थोड़ी सी अवश्य पड़े।।3।।

* शेषशायी भगवान विष्णु की धर्मपत्नी श्री लक्ष्मीजी के नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हों, जिनकी पु‍तली तथा बरौनियाँ अनंग के वशीभूत हो अधखुले, किंतु साथ ही निर्निमेष (अपलक) नयनों से देखने वाले आनंदकंद श्री मुकुन्द को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं।।4।।

* जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि-मंडित वक्षस्थल में इंद्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करने वाली है, वह कमल-कुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।।5।।

* जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णु के काली मेघमाला के श्यामसुंदर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती है, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनंदित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी है, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीय मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।।6।

* समुद्र कन्या कमला की वह मंद, अलस, मंथर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझ पर पड़े।।7।।

* भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्र रूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्म (धनागम विरोधी अशुभ प्रारब्ध) रूपी धाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद रूपी धर्मजन्य ताप से पीड़ित मुझ दीन रूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करे।।8।।

* विशिष्ट बुद्धि वाले मनुष्य जिनके प्रीति पात्र होकर जिस दया दृष्टि के प्रभाव से स्वर्ग पद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, पद्‍मासना पद्‍मा की वह विकसित कमल-गर्भ के समान कांतिमयी दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे।।9।।

 जो सृष्टि लीला के समय वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूप में विराजमान होती है तथा प्रलय लीला के काल में शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखर वल्लभा पार्वती (रुद्रशक्ति) के रूप में अवस्थित होती है, त्रिभुवन के एकमात्र पिता भगवान नारायण की उन नित्य यौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है।।10।।

* मात:। शुभ कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिंधु रूपा रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमल वन में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुष्टि रूपा पुरुषोत्तम प्रिया को नमस्कार है।।11।।

* कमल वदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिंधु सभ्यता श्रीदेवी को नमस्कार है। चंद्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है। (12)

* कमल सदृश नेत्रों वाली माननीय माँ! आपके चरणों में किए गए प्रणाम संपत्ति प्रदान करने वाले, संपूर्ण इंद्रियों को आनंद देने वाले, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत हैं, वे सदा मुझे ही अवलम्बन दें। (मुझे ही आपकी चरण वंदना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे)।।13।।

* जिनके कृपा कटाक्ष के लिए की गई उपासना उपासक के लिए संपूर्ण मनोरथों और संपत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मी देवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूँ।।14।।

* भगवती हरिप्रिया! तुम कमल वन में निवास करने वाली हो, तुम्हारे हाथों में नीला कमल सुशोभित है। तुम अत्यंत उज्ज्वल वस्त्र, गंध और माला आदि से सुशोभित हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी, मुझ पर प्रसन्न हो जाओ।।15।।

* दिग्गजों द्वारा सुवर्ण-कलश के मुख से गिराए गए आकाश गंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्री अंगों का अभिषेक (स्नान) संपादित होता है, संपूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रात:काल प्रणाम करता हूँ।।16।।

* कमल नयन केशव की कमनीय कामिनी कमले!
मैं अकिंचन (दीन-हीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ, अतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूँ। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरह तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।।17।।

* जो मनुष्य इन स्तु‍तियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन-जननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभावों को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।।18।।
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